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ततोऽनि श्रीजिनवल्लभाख्यः, सूरिः सुविद्यावनिताप्रियोऽसौ। अद्यापि सुस्था रमते नितान्तं, यत्कोत्तिहंसी गुणिमानसेषु ॥५॥
यश्चाकरोत महावतैरिदं प्रकरण लघ।। धर्मशिक्षाभिधं भव्यसत्त्वानां शिवदन्ततः ॥६॥
जिनपतिरिति सूरिस्त द्विनेयावतंसः, समभवदिह येन प्रोज्ज्वलानि प्रचक्रे । गुणिजनवदनानि प्रौढवादीन्द्रवृन्दवजविजयसमुत्थेरिन्दुगौरेयंशोभिः॥८॥ तच्छिष्यलेशेन जडात्मनापि, प्रपञ्चिता किञ्चन धर्मशिक्षा।
चक्रे सुबोधा जिनपालनाम्ना निदेशतः सूरिजिनेश्वराणाम् ।।६॥
इस टीका की एक-मात्र प्रति मेरे संग्रह में सुरक्षित है । जिनपालोपाध्याय के विशेष परिचय के लिये देखें, मेरे द्वारा सम्पादित 'सनत्कुमारचक्रि चरित महाकाव्य' की भूमिका ।
युगप्रवरागम श्रीजिनपतिसूरि संघपट्टक बृहत् वृत्ति के टीकाका आ०जिनपतिसूरिश्री जिनवल्लभ के प्रपौत्र, युगप्रधान जिनदत्त सूरि के प्रशिष्य तथा मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के शिष्य थे। आप विक्रमपुर (जैसलमेर का समीपवर्ती) के निवासी माल्हू गोत्री यशोवर्धन सूहवदेवी के पुत्र थे । आपका जन्म वि. सं० १२१० चैत्र कृष्णा ८ को हुआ था और आपकी दीक्षा सं० १२१७ फाल्गुन शुक्ला १० को जिनचन्द्रसूरि के हाथ से हुई थी। आपकी दीक्षावस्था का नाम नरपति था।
सं० १२२३ भाद्रपद कृष्णा १४ को जिनचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हो जाने से उनके पद पर १२२३ कात्तिक शुक्ला त्रयोदशी को यु० जिनदत्तसूरि के पादोपजीवि श्री जयदेवाचार्य ने नरपति को (आपको) स्थापित किया और नाम जिनपतिसूरि रखा। आचार्य पदारोहण के समय आप की उम्र केवल १४ वर्ष की ही थी।
सं० १२२८ में जिस समय आय आशिका पधारे उस समय नगर का उल्लेखनीय प्रवेश महोत्सव तत्रस्थानीय नरेश भीमसिंहजी ने किया था। वहीं रहते हुए वहां के प्रामाणिक दिगम्बर विद्वान् (जिसका नामोल्लेख प्राप्त नहीं है) को शास्त्र-चर्चा में पराजित किया था।
____ सं० १२३९ में अजमेर में इतिहास के प्रसिद्ध पुरुष अन्तिम हिन्दू सम्राट महाराजा पृथ्वीराज चौहान की अध्यक्षता में, राजसभा में फलवद्धिका निवासी उपकेशगच्छोय पद्मप्रभ के साथ शास्त्रार्थ हुआ था। उस समय राजसभा में प्रधानमन्त्रि कैमास, सभा के शृङ्गार पं० वागीश्वर, जनार्दन गौड, विद्यापति आदि महाविद्वान् एवं महाराजा पृथ्वीराज का अतिवल्लभ मण्डलीक राणकतल्य तथा जिनपतिसरिका भक्त श्रावक रामदेव आदि उपस्थित थे। आचार्यश्री के साथ शास्त्र-विद्या में एवं श्रावक रामदेव के साथ मल्लविद्या में पद्मप्रभ ने बहुत बुरी
वल्लभ-भारती ]
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