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________________ कवि ने अपनी लघुता दिखाने के लिये अपना उपनाम 'शिष्यलेख' रखा है और इसी का सनत्कुमारादि काव्यों में प्रयोग किया है। द्वादशकुलक-विवरण— अनेक ग्रन्थों का अवलोकन कर प्रमाण देते हुए ३३६३ श्लोकोपेत द्वादशकुलक का विवरण आपने बहुत ही सुन्दर पद्धति से लिखा है। इस विवरण में शब्दों की व्यर्थ भरमार नहीं है, इससे ग्रन्थकार के मूल आशय को समझने में काफी सरलता हो गई है। इस का रचना काल १२६३ भाद्रपद शुक्ला १२ है और इसका प्रारंभ गच्छनायक श्री जिनेश्वरसूरि के आदेश से किया गया था: चक्रे तच्छष्यलेशनिरुपमजिनपालाभिषेकैः प्रसादादत्युग्रात् सद्गुरूणां कुलक विवरणं किञ्चिदेतत् सुबोधम् । तज्छोध्यं सूरिवर्यैमयि विहितकृपः सम्भवन्त्येव यस्माद्, दोषrrorataये किमुत कुवचने मादृशां मान्द्यभाजाम् ॥ ६॥ श्रीमत्सूरिजिनेश्वरस्य सुमुनिव्रातप्रभोः साम्प्रतं, शीघ्र ं चारुमहाप्रबन्धकवितुर्वाक्यात् समारम्भ यत् । ३ १२ धर्म-शिक्षा- विवरण - धर्मोपदेशमय ४० श्लोक के इस छोटे से काव्य में वर्णित १८ वस्तुओं का सैद्धान्तिक - प्रतिपादन और दृष्टान्तों सहित विवेचन सुन्दर पद्धति से किया गया है । द्वादशकुलक विवरण की अपेक्षा इसकी भाषा कुछ अधिक प्रौढ है । जो स्वाभाविक भी है क्योंकि आप्त इत्यादि का विवेचन दार्शनिक विषय होने से दुरूह होता ही है; फिर भी उसे सरल पद्धति में रखने का आपने प्रयत्न अवश्य किया है। १५८ ] ह सन्निष्ठामधुना ययौ गुणनवादित्यप्रमाणे वरे, वर्षे भाद्रपदे सितौ शुभतरे द्वादश्य हे पावने ||७|| X X X त्रयस्त्रिंशच्छतान्येव त्रिषष्ट्या सङ्गतानि च । प्रत्यक्षरं प्रमाणं भोः श्लोकानामिह निश्चितम् ॥६॥ इसकी भी रचना तत्कालीन गणनायक श्रीजिनेश्वरसूरि के आग्रह से सं० १२६३ पौष शुक्ला & अनुमानतः २००० श्लोक प्रमाण में पूर्ण की गई है: . को X गुणग्रहोष्ण तिसंख्य, वर्षे पौधे नवम्यां रचिता सितायाम् । स्पष्टाभिधेयाद्भुतधर्मशिक्षा-वृत्तिविशुद्धा स्फटिकावलीय ॥२॥ X X X सूरिजिनेश्वर इतीह बभूव शाखी, यस्वाऽभवत् फलयुगाकृति शिष्ययुग्मम् । तत्रादिमो निरुपमो जिनचन्द्रसूरि-रन्यो नवाङ्गनिधिदोऽभयदेवसूरिः ||४|| [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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