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श्री जिन पालोपाध्याय मौलेस्तस्यास्य सन्निधौ । मयोपादाय नन्द्यादिमूलागमाङ्गवाचना ॥३६॥
जिन पालोपाध्याय श्रासन् यस्यागमे गुरवः ।
संदेह दोलावृलिवृति - प्रशस्ति
आपकी स्वतन्त्र मौलिक रचनाओं में सनत्कुमारच क्रिचरित' महाकाव्य है । इसमें २४ सर्ग हैं | इसके २१ वें सर्ग में युद्धवर्णन प्रसंग को लक्ष्य में रखकर कविकल्पना के साथ क. च. ट. त. प. य. इत्यादि वर्गों का परिहार करते हुए चित्रकाव्यों में जो चमत्कार दिखलाया है वह अन्यत्र सुलभ नहीं है। इसी की प्रशंसा करते हुए सुमति गणि लिखते हैं:नानालङ्कारसारं रचितकृतबुधाश्चर्यचित्रप्रकार, नानाच्छन्दोभिरामं नगरमुख महावर काव्यप्रकामम् । go काव्यं सटीक संकलकविगुरगं तुर्यचक्रेश्वरस्य,
क्षिप्रं यैस्तेsभिषेकाः प्रथमजिनपदाश्लिष्टपाला मुद्दे नः ॥ १३ ॥
इसमें 'सटीक' शब्द जो सुमति गणि ने लिखा है उससे यह तो निश्चित है कि इस
पर आपने स्वयं ने टीका की रचना की थी; किन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि इसकी टीका आज
अभयकुमारचरित-प्रशस्ति
आप केवल कवि ही नहीं थे किन्तु एक सफल टीकाकार भी थे। आपकी रचित निम्नाङ्कित टीकाएं प्राप्त हैं:
९. षट् स्थानक वृत्ति ( सं १२६२ ) ३. द्वादश कुलक- विवरण ४ ( सं . १२६३ ) ५. धर्मशिक्षा - विवरण (सं. १२९३ ) ७. स्वप्नफलविवरण
इनके अतिरिक्त युग प्रधानाचार्य गुर्वावलि" (सं. १३०५ ढिल्ली वास्तव्य हैमाभ्यर्थनया) जो ऐतिहासिक दृष्टि से खरतरगच्छ के आचार्यों का एक सुव्यवस्थित इतिहास प्रस्तुत करती है तथा जिनपतिसूरि पंचाशिका और संक्षिप्त पौषध विधि भी प्राप्त है ।
६. अप्रकाशित है । प्राचीन प्रति मेरे संग्रह
८. जैसलमेर भंडार
१. यह महाकाव्य मेरे द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित हो चुका है।
२. ४.५. जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार सूरत से प्रकाशित
३. ७. पं० लालचन्द्र गांधी द्वारा संपादित अपभ्रंश काव्यत्रयी में प्रकाशित
में
२ उपदेश रसायन विवरण 3 ( सं १२६२ ) ४. पंचलिङ्गी विवरण - टिप्पण (सं. १२९३ ) ६. चर्चरी - विवरण: (सं. १२६४ ) ८. स्वप्न विचारभाष्यवृत्ति
है ।
६. अप्राप्त ।
१०. मुनि जिनविजय संपादित एवं सिंघी ग्रन्थमाला से प्रकाशित है ।
वल्लभ-भारती ]
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