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लघु अजित शान्ति-स्तव
नन्दीश्वर स्तोत
भावारिवारण स्तोत
(उल्लासि) टीक
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बल्लभ-भारती ]
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बालावबोध
91
19
टीका
टीका
11
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99
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अवचूरि बालावबोध पादपूर्ति स्तोत
१. मुनि कान्तिसागर संग्रह, जयपुर, सं० १५०१ लिखित प्रति । २. इसकी प्रति महिमा भक्ति भंडार बीकानेर में नं० २१० पर है ।
उ० धर्मं तिलक
उ० समयसुन्दर
उ० गुणनिय
उ० साधुकीत
उ० कमलकीत्ति
उ० देवचन्द्र उ० साधुसोम
उ० जयसागर
उ० मेरुसुन्दर क्षैमसुन्दर
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चारित्रवर्धन
मतिसागर
टोकाकारों का परिचय
मुनिचन्द्रसूरि
सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण के चूर्णिकार आचार्य मुनिचन्द्रसूरि वृहद्गच्छीय पर्वदेवसूरि के प्रशिष्य और श्री यशोभद्रसूरि के शिष्य थे । आपको संभवतः श्री नेमिचन्द्रसूरि ने आचार्य पद प्रदान किया था। आपके विद्यागुरु पाठक विनयचन्द्र थे । आप न केवल असा • धारण विद्वान् तथा वादीभपंचानन थे, अपितु अत्युग्र तपस्वी और बालब्रह्मचारी भी थे । आप केवल सौवीर ( कांजी) ही ग्रहण करते थे. इसी कारण से आप "सौवीरपायी" के नाम से प्रसिद्ध हुए। आपके अनुशासन में ५०० साधु और साध्वियों का समुदाय निवास करतो था । तत्समय के प्रसिद्ध वादीकण्ठकुद्दाल आचार्य वादी देवसूरि जैसे विद्वान् के गुरु होने का आपको सौभाग्य प्राप्त था। गुर्जर, लाट, नागपुर इत्यादि आपकी विहारभूमि के क्षेत्र थे । ग्रन्थ रचनाओं में प्राप्त उल्लेखों को देखते हुए आपका पाटण में अधिक निवास हुआ प्रतीत होता है । आपका स्वर्गवास सं० १९७८ में हुआ है ।
अज्ञात
उ० मेसुन्दर पद्मराज पणि
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