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स्वप्न-सप्तति प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतकाव्यम्
पंजिका बालावबोध टीका टीका अवचूरि
देवराज उ० लक्ष्मीवल्लभ सर्वदेवसूरि उ० पुण्यसागर सोमसुन्दरसूरि शिष्य मुक्तिचन्द्र गणि कमलमन्दिर गणि४ अज्ञात .
अज्ञात
।
चरित्र पञ्चक
टीका टीका अवचूरि बालावबोध टीका अवचूरि बालावबोध
महावीर चरित्र
उ० साधुसोम उ० कनकसोम कमलकीत्ति उ० समयसुन्दर कनककलश गणि विमलरत्न उ० समयसुन्दर
स्तबक
सुमति
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१. देवराज, इस पंजिका का उल्लेख केवल जिनरत्न कोष में ही है। २. सोमसुन्दरसूरि शिष्य का नामोल्लेख नहीं है । लेखक का समय १६वीं शती का पूर्वार्ध है । यह अव-.
चूरि स्तोत्र रत्नाकर द्वितीय भाग में प्रकाशित हो चुकी है । ३. मुक्तिचन्द्र गणि का समय १६वीं शती का पूर्वाध है। इनका कोई इतिवृत्त प्राप्त नहीं है । इसकी
एक मात्र प्रति मेरे संग्रह में है। ४. इस अवचूरि के कर्ता खरतरगच्छीय वेगड़ शाखा के श्री जिनगुणप्रभसूरि के शिष्य कमलमंदिर है ।
संभवतः आपका सत्ताकाल १७वीं शती है । इसकी तत्कालीन लिखित ६ पत्र की प्रति नाहटाजी के संग्रह में है। इसका प्राद्यन्त इस प्रकार है:(प्रा०) सद्गुरु गरिमागरं, ज्ञानविज्ञानसंयुतम् । प्रणम्य परया भक्त्याऽवचूरिलिख्यते मया ॥१॥ (अं०) इत्यवचूरिः, कृता श्रीखरतर-बेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनगुणप्रभसूरीश्वरसुविनेयेन
__मुनिना कमलमन्दिरेण शोधिता। पं० गुणसागरवाचनाय ।। ५. इसकी एक मात्र प्रति यूनिवर्सिटी लायब्ररी बम्बई में सुरक्षित है । जैसा कि कुछ सूचिपत्रों में कर्ता का नाम
देवसूरि लिखा है। किन्तु लिपि-वाचन के भ्रम से 'तदवचूरि' को देवसूरि पढा गया हो, ऐसा प्रतीत होता है। ६. जिनरत्न कोषानुसार ७. खरतरगच्छीय श्री जिनचन्द्रसूरि के शिष्य रंगनिधान के पठनार्थ सं० १६०६ में इसकी रचना की
गई है। इसी समय की एक प्रति भां० ओ० रि० इ० पूना में नं० ३१३:. १८७१-७२ पर पत्र
३ पंच पाठमय सुरक्षित है । ८. इसकी स्वयं लिखित प्रति राज० प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में है। ९. खरतरगच्छीय पिप्पलक शाखा के श्री उदयसागर के प्रशिष्य श्री जयकीर्ति के शिष्य थे। प्रापका
सत्ताकाल १७वीं शती का उतराद्ध है।
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[ वल्लभ-भारती