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पिण्डविशुद्धि-वृत्ति
लघुवृत्ति दीपिका टीका दीपिका (लघुवृत्तिरूपा) अवचूरि
श्रीचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि उदयसिंहसूरि अजितदेवसूरि'
अज्ञातकर्तृक
पञ्जिका
अवचूरि टीका
वृत्ति .
बालावबोध पौषधविधिप्रकरण प्रतिक्रमण समाचारी द्वादशकुलंक धर्मशिक्षा प्रकरण
श्रीचन्द्र अज्ञातकर्तृक . कनककुशल संवेगदेवगणि
यु० जिनचन्द्रसूरि स्तबक
विमलकीत्ति टीका
उ० जिनपाल टीका
उ० जिनपाल बृहद्वृति जिनपतिसूरि लघुवृत्ति (संस्करण) उ० हर्षराज वृत्ति
लक्ष्मीसेन
विवेकरत्नसूरि अवचूरि
उ० साधुकीति
संघपट्टक
१. पल्लीवाल गच्छीय श्री महेश्वरसूरि के शिष्य हैं। इस दीपिका की रचना सं १६२६ में हुई है।
आपकी रची हुई उत्तराध्ययन बालावबोधिनी टीका, प्राचारांग दीपिका और पाराधना आदि प्राप्त
हैं। इस दीपिका की केवल एक मात्र प्रति पाटण भण्डार में है। २. इसकी प्रति गाल रोयल एशियाटिक सोसायटी में है। वृहत् टिप्पनिका के आधार पर इसका
श्लोक परिमाण ५५० है। ३. सं १५१० आषाढ वदि २ देवकुलपाटक नगर में तपगच्छीय सोमसुन्दरसूरि प्रशिष्य उपाध्याय
साधुराज गणि के शिष्य आनन्दरत्न गरिण लिखित प्रति कान्तिविजय जी सं० बड़ौदा में है। ४. इसकी प्रति डेला उपाश्रय भंडार अहमदाबाद में है। ५. जैन प्रन्थावली के आधार से इसकी प्रति जैसलमेर भंडार में है। ६. इसकी प्रति विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञान भंडार आगरा आदि में है। इसका कर्ता कौन है ? संदिग्ध है। ७. जिनरत्न कोष में इसे संदिग्ध कर्ता के रूप में लिखा है। अतः विचारणीय है। यदि कनक
कुशल ही हो तो ये कनककुशल विजयसेनसूरि के शिष्य थे और इनका सत्ताकाल हैं १७वीं शती का
उत्तरार्द्ध । इनके परिचय के लिये देखें, देसाई का जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास । ८. ये खरतरगच्छ के हैं और इसकी एक मात्र प्रति डेलानो भण्डार अहमदाबाद में है। प्राप्त न होने से
लेखक और व्याख्या के सम्बन्ध में लिखने में मैं असमर्थ हैं।
घल्लभ-भारती ]
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