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________________ वृत्ति " " 33 प्राकृत वृत्ति टिप्पणक आगमिकवस्तुविचारसार ( षडशीति) भाष्य " टिप्पण वृत्ति " 21 विवरण टीका अवचूरि 21 उद्धार धनेश्वराचार्य महेश्वराचार्य ' हरिभद्रसूरि चक्रेश्वराचार्य अ अज्ञातकर्तृ क४ 22 रामदेव गणि हरिभद्रसूरि मलयगिरि यशोभद्रसूरि मेरु वाचक अज्ञातकर्तृक* अज्ञातकर्तृक१• " 19 ११ १२ १. महेश्वराचार्य की टीका कान्तिविजयजी संग्रह बड़ोदा में है । ० महेश्वर अनेक हुए हैं। आप का समय इत्यादि के संबंध में प्रति के प्रभाव में मैं कहने में असमर्थ हूं । २. इस टीका की नोंध वृहट्टिप्पनिका के प्राधार से की गई है। अतः इसकी प्रति प्राप्त है या नहीं ? नहीं कह सकता । ३. इस टीका की प्रतियें पाटण के भंडारों में है । चक्रेश्वराचार्य अनेक हुए हैं। अतः प्राप का समय क्या था, प्रति के अभाव में नहीं कह सकता । परन्तु धनेश्वराचार्य विरचित वृत्ति का आपने संशोधन किया है । ऐसा उल्लेख आचार्य धनेश्वर स्वयं करते हैं । श्रतः मेरी मान्यतानुसार इनकी स्वयं वृत्ति नहीं होगी । ४. संभवतः मुनिचन्द्रसूरि रचित चूरिंग ही हो क्योंकि चूर्णी प्राकृत में ही है । ५. संभवत: रामदेव गरिए का ही हो, इसकी प्रति जयपुर भंडार में है । ६. यह 'सटीकाश्चत्वारः प्राचीनकर्मग्रन्थाः' में प्रकाशित हो चुका है । ७. यह २३ गाथा का प्रपूर्ण मुनि श्री चतुरविजय जी को प्राप्त है। इसमें कर्त्ता का उल्लेख नहीं है । ८. इसकी प्रति अहमदाबाद चंचलबाना भंडार में है । पत्र २ हैं । ये मेरु वाचक कौन हैं ? प्रति के सन्मुख न होने से नहीं कह सकता । ६. इसकी प्रति बंगाल एसियाटिक सोसायटी में है । १०. १२. अवचूरि और उद्धार दोनों प्रतियें खंभात जैन शाला के भण्डार में है । अवचूरि ७०० श्लोक परिमाण की है और उद्धार १६०० श्लोक परिमाण का । इन दोनों के कर्त्ता कौन हैं? कह नहीं सकता । ११. इसकी एक प्रति कान्तिविजयजी संग्रह बड़ौदा में १६ वीं शती लिखित प्राप्त है । १३८ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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