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वृत्ति
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प्राकृत वृत्ति टिप्पणक आगमिकवस्तुविचारसार ( षडशीति)
भाष्य
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टिप्पण
वृत्ति
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21
विवरण
टीका
अवचूरि
21
उद्धार
धनेश्वराचार्य
महेश्वराचार्य '
हरिभद्रसूरि
चक्रेश्वराचार्य अ
अज्ञातकर्तृ क४
22
रामदेव गणि
हरिभद्रसूरि मलयगिरि
यशोभद्रसूरि
मेरु वाचक
अज्ञातकर्तृक* अज्ञातकर्तृक१•
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११
१२
१. महेश्वराचार्य की टीका कान्तिविजयजी संग्रह बड़ोदा में है ।
० महेश्वर अनेक हुए हैं। आप का समय इत्यादि के संबंध में प्रति के प्रभाव में मैं कहने में असमर्थ हूं । २. इस टीका की नोंध वृहट्टिप्पनिका के प्राधार से की गई है। अतः इसकी प्रति प्राप्त है या नहीं ?
नहीं कह सकता ।
३. इस टीका की प्रतियें पाटण के भंडारों में है । चक्रेश्वराचार्य अनेक हुए हैं। अतः प्राप का समय क्या था, प्रति के अभाव में नहीं कह सकता । परन्तु धनेश्वराचार्य विरचित वृत्ति का आपने संशोधन किया है । ऐसा उल्लेख आचार्य धनेश्वर स्वयं करते हैं । श्रतः मेरी मान्यतानुसार इनकी स्वयं वृत्ति नहीं होगी ।
४. संभवतः मुनिचन्द्रसूरि रचित चूरिंग ही हो क्योंकि चूर्णी प्राकृत में ही है ।
५. संभवत: रामदेव गरिए का ही हो, इसकी प्रति जयपुर भंडार में है ।
६. यह 'सटीकाश्चत्वारः प्राचीनकर्मग्रन्थाः' में प्रकाशित हो चुका है ।
७. यह २३ गाथा का प्रपूर्ण मुनि श्री चतुरविजय जी को प्राप्त है। इसमें कर्त्ता का उल्लेख नहीं है । ८. इसकी प्रति अहमदाबाद चंचलबाना भंडार में है । पत्र २ हैं । ये मेरु वाचक कौन हैं ? प्रति के सन्मुख न होने से नहीं कह सकता ।
६. इसकी प्रति बंगाल एसियाटिक सोसायटी में है ।
१०. १२. अवचूरि और उद्धार दोनों प्रतियें खंभात जैन शाला के भण्डार में है । अवचूरि ७०० श्लोक परिमाण की है और उद्धार १६०० श्लोक परिमाण का । इन दोनों के कर्त्ता कौन हैं? कह नहीं सकता । ११. इसकी एक प्रति कान्तिविजयजी संग्रह बड़ौदा में १६ वीं शती लिखित प्राप्त है ।
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[ वल्लभ-भारती