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ये प्रत्येक चैत्य तोरण, ध्वजा, अष्टमंगल तथा पूजादि की समग्र सामग्रियों से आकलित हैं। इन चैत्यों में कल्याणक दिवसों, पर्वतिथि तथा पर्यों में समग्र प्रकार के देवता आकर द्रव्य और भाव पूजन के साथ भक्ति करते हैं ।
नंदीश्वर द्वीप के अन्तर्मध्य में ४ रतिकर नामक पर्वत विशेष हैं । इनकी प्रत्येक दिशा में एक-एक राजधानी होने से कुल १६ राजधानियें हैं, जिनमें ८ सौधर्मेन्द्र की इन्द्राणियों की और ८ ईशानेन्द्र की इन्द्राणियों की हैं, जिनके नाम हैं -देवकुरा, उत्तरकुरा, नन्दोत्तरा, नन्दायणा, भूता, भूतावसन्ता, मातारमा, अग्निमालिनी, सोमनसा, सुसीमा, सुदर्शना, अमोघा, रत्नप्रभा, रत्ना, सर्वरत्ना और रत्नसंचया। ये सम्पूर्ण नगरियां राजधानीवत् समग्र वस्तुओं से परिपूर्ण हैं। इनमें देवी-देवता निवास करते हैं और क्रीड़ा पूर्वक अपना समय व्यतीत करते हैं।
प्रत्येक राजधानी में एक-एक जिन चैत्य (मतान्तरापेक्षया दो-दो) पूर्ववणित प्रतिभावों और सामग्रियों से पूर्ण हैं। केवल इनके ३ दरवाजे होते हैं और शाश्वत नामधारक ४ प्रति. माओं के अभाव में १२० प्रतिमायें होती हैं। - इसमें प्रत्येक पर्वत, पुष्करिणी. वनखण्ड, नगरी आदि की उच्चता, पृथुता, अधोभाग इत्यादि के परिमाण का उल्लेख किया गया है।
__ अन्त में कवि उपसंहार करता हुआ सूत्रों के अनुसार २०, वृत्तियों की दृष्टि से ५२, राजधानियों के विचार से १६ तथा मतान्तर से ३२, जिनेश्वरों को नमस्कार करता है जो नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यों में विराजमान बतलाये गये हैं।
३२. भावारिवारणा स्तोत्र _ समसंस्कृत प्राकृत भाषा में साहित्य-सर्जन करना अत्यन्त ही दुष्कर कार्य है, क्योंकि दोनों भाषाओं पर जिसका समान अधिकार हो और प्रतिभा हो वही इस शैली का अनुसरण कर सकता है। भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से ऐसे साहित्य की विशेष महत्ता है । इस प्रकार की कृति हमें सर्वप्रथम याकिनी महत्तरासूनु आचार्य हरिभद्रसूरि की 'संसारदावा' स्तुति मिलती है । प्रस्तुत महावीर स्तोत्र अपरनाम भावारिवारण भी इसी कोटि की सुन्दरतम रचना है।
भक्तामर, कल्याणमन्दिर, सिन्दूरप्रकर की तरह ही 'भावारिवारण' इसका आदि पद होने से यह महावीर स्तोत्र भी इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार के नाम पड़ने से यह स्पष्ट ही है कि यह स्तोत्र जनता में बहुत लोकप्रिय होने से अत्यधिक पढ़ा जाता था। अपनी आलंकारिक योजना, प्रसादगुणवैभव, माधुर्य प्रचरता. छन्द की गेयता. तथा भावानकूल शब्द-योजना आदि के कारण इसमें आकर्षण और प्रभाव अधिक है। इस स्तोत्र को साहित्यिक स्तोत्र-साहित्य में भक्तामर और कल्याणमंदिर की कोटि में सरलता से रखा जा सकता है। स्तोत्र का लक्ष्य भगवान् की गुणगरिमा का गान करके संगीत लहरियों द्वारा आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करना है।
वल्लभ-भारती ]
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