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________________ कुल संख्या कर्म संख्या छन्द ३१ आर्या; ३ शार्दूलविक्रीडित; ४ मालिनी; १२ वसन्ततिलका; १७ मन्दाक्रांता, आर्या आर्या आर्या मालिनी १-१० वसन्ततिलका; ११ शार्दूल विक्रीडित ; अन्तिम पद्य संस्कृत में । १-७ मालिनी; ८ स्रग्धरा, आर्या प्रथम कुलक:-इसमें श्रेष्ठ कुलोत्पन्न, गुणागार, धर्मोद्यत उपासकों को उपदेश दिया गया है। परन्तु सर्वप्रथम यह बताया गया है कि धर्मोपदेश श्रवण का अधिकारी कौन है ? अधिकारी का निर्णय करने के पश्चात् उसके आचरण करने योग्य धर्ममय औपदेशिक तत्त्वों का निदर्शन किया गया है। द्वितीय कुलकः-कदली पत्र पर स्थित जलबिन्दु के समान जीवन. धन, यौवन और स्वजन-संयोग क्षणिक समझकर, निपुणबुद्धि के साथ कुग्रह का त्याग कर, निर्वाण सुख के अनन्य कारणभत भवनगण्य की विचारणा करे। वर्तमान समय में श्रतधरों का अभाव है, अतः तत्प्ररूपित आगमानुसार ही सद्गुरु की उपासना, धर्माराधन, जिनपूजन आदि सत्कृत्यं करे; जिससे प्राप्त मानुष्यादि सामग्री का सदुपयोग हो और भवबन्धन का नाश हो । ततीय कुलक:-जन्म मत्य के आवर्तन से पूर्ण इस भवोदधि में यौवन, जीवन, लावण्य लक्ष्मी, भोगसुख, कामिनी, राज्य परिवार आदि इहलौकिक समग्र वस्तुयें जल बुद्-बुद् के समान नश्वर हैं तथा वियोग, शोक एवं दुःख के भंडार हैं । अतः संविग्न-मार्गानुसार सम्यक्त्व युक्त पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाव्रत रूपी सद्धर्म कल्पवृक्ष को श्रद्धामय जल से सिंचन करे। त्रिकाल चैत्य-वन्दन, दान, इन्द्रियदमन, पंचभावना, स्वधर्मी-वात्सल्य आदि सत्कृत्यों को निष्काम भाव से तथा मात्सर्य, मोह एवं लोभ रहित होकर करे, जिससे भव का नाश हो । चतुर्थ कुलक:-राग और द्वेष रूपी भुजंगों से परिपूर्ण इस संसार समुद्र के भीतर चतुर्गतियों में भ्रमण करते हुए, यह दश दृष्टान्तों से दुर्लभ मनुष्यभव तुझे प्राप्त हुआ है । अतः प्रमाद का त्याग कर । प्रमाद जीवन का एक महाशत्रु है जो तुझे इस संसार में परिभ्रमण कराता है। कदाग्रह का त्याग करके विधि अनुसार आचरण करने वाले साधुजनों की सम्यक् प्रकार से सेवा-शुश्रुषा कर। चारित्र का पालन कर । अंतरंगशत्र राग-द्व'ष क्रोधादि कषायों का दमन कर । दाक्षिण्यादि भावनाओं का पालन कर । आयुष्य अत्यल्प है, आचरण अत्यधिक है अतः सुसंयोगों से प्राप्त सद्गुरु की अध्यक्षता में पूर्णरूपेण धर्माराधन कर, जिससे तेरा कल्याण हो। पंचम कुलक:-निगोद, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि संसार की समस्त योनियों ६६ ] [ वल्लभ-भार
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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