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राजगच्छपट्टावली ( विविधगच्छाय पट्टावली संग्रहः, संपा० आचार्य जिनविजय पृ० ६४ ) में लिखा है:
"श्रीउद्योतनसूरयस्तदन्वये श्रीश्रभयदेवसूरयः, x x × × × × तच्छिष्याः " पिण्डविशुद्धयादिप्रकररणकारकाः श्रीजिनवल्लभसूरयः ।" इतने पर भी यदि यह मान लें कि खरतरगच्छीय जिनवल्लभगणि पिण्डविशुद्धि के कर्त्ता नहीं हैं अपितु कोई और है तो फिर वे कौन थे ? किस गच्छ के थे ? इत्यादि अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं जिनका समाधान करने के लिये किसी भी प्रकार का कोई प्रमाण नहीं मिलता है । तत्कालीन तीन चार शताब्दियों में खरतर गणि जिनवल्लभ के अक्तिरिक्त किसी भी ऐसे व्यक्ति की उपलब्धि जैन साहित्य के इतिहास में नहीं होती है जो पिण्डविशुद्धिकार हो सके । खरतरगच्छीय गुरु- परम्पराओं के अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में अन्यत्र कोई उल्लेख भी नहीं मिलता । अतः यह सिद्ध है कि पिण्डविशुद्धिकार जिनवल्लभगणि कोई पृथक् आचार्य नहीं है. किन्तु अभयदेवाचार्य के शिष्य खरतरगच्छीय ही हैं ।
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[ वल्लभ-भारती