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________________ अध्याय : ४ ग्रन्थों का परिचय तथा वैशिष्ट्य ग्रन्थ रचना गणिवरजी १२वीं शती के सुप्रसिद्ध उद्भट विद्वानों में से एक थे । इनका अलङ्कार. शास्त्र, छन्दशास्त्र, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष, नाट्यशास्त्र, कामतन्त्र और सैद्धान्तिक विषयों पर एकाधिपत्य था । इन्होंने अपने जीवनकाल में विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थों की रचना की थी जिसका उल्लेख सुमतिगणि गणधर सार्द्धं शतक की वृत्ति में इस प्रकार करते हैं: — परमद्यापि भगवतामवदातचरितनिधीनां श्रीमरुकोट्टसप्तवर्षप्रमितकृतनिवासपरिशीलितसमस्तागमानां समग्रगच्छादृतसूक्ष्मार्थसिद्धान्त विचारसार- षडशीति-सार्द्धं शतकाख्यकर्मग्रन्थ-पिण्डविशुद्धि - पौषधविधि - प्रतिक्रमण सामाचारी सङ्घपट्टक-धर्मशिक्षा- द्वादशकुलकरूपप्रकरण- प्रश्नोत्तरशतक - शृङ्गारशतक - नानाप्रकारविचित्रचित्तकाव्य - शतसंख्यस्तुतिस्तोत्रादिरूपकीर्तिपताका सकलं महीमण्डलं मण्डयन्ती विद्वज्जनमनांसि प्रमोदयति । " - किन्तु दैवदुर्विपाक से बहुत से अमूल्य ग्रन्थ नष्ट हो गये और इस कारण से इस समय ४४ रचनाएँ ही प्राप्त हैं एवं अन्य के केवल नामोलेख ही मिलते हैं । उपलब्ध ग्रन्थों की तालिका निम्नलिखित है: ग्रन्थ नाम 1 १. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार (सार्द्ध शतक) प्रकरण २. आगमिकवस्तुविचारसार (षडशीति) प्रकरण ३. पिण्डविशुद्धि प्रकरण ४. सर्वजीवशरीरावगाहना स्तव ५. श्रावकव्रत कुलक वल्लभ-भारती ] विषय कर्म - सिद्धान्त प्राकृत 11 भाषा आचार कर्म - सिद्धान्त आचार " 21 11 " गाथा अथवा पद्य संख्या १५२ ८६ १०३ = २८ [ ८५
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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