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________________ (छ) अञ्चलगच्छीय धर्मशेखरसूरि शिष्य उदयसागर स्वप्रणीत कल्पसूत्रटीका (र० १५११) में लिखते हैं:"हस्त उत्तरोऽग्रेसरो यासां ताः उत्तराफाल्गुन्यः, बहुवचनं पञ्चकल्याणकापेक्षया 'होत्था' आसीत् । x x x x x स्वातिना नक्षत्रोण परिनिर्वृतः निर्वाणं प्राप्तः ।” (ज) अञ्चलगच्छीय वाचनाचार्य श्रीमहावजी गणि शिष्य मुनि माणिकऋषि लिखित सं० १७६६ की प्रति' में लिखा है:"पञ्चसु च्यवनादिकल्याणकेषु हस्तोतरा-हस्तादुत्तरस्यां दिशि वर्तमाना यद्वा हस्त उत्तरो यासां ता उत्तराफाल्गुन्यो यस्य स पञ्च हस्तोत्तरो भगवान् होत्थ त्ति अभूत् ।” (झ) जोधपुर केसरियानाथ भंडार में सुरक्षित कल्पसूत्र टीका की एक प्राचीन प्रति२ में लिखा है:"श्रीवर्द्ध मानतीर्थाधिपतेः पञ्चकल्याणकानि हस्त उत्तरो अग्रे यस्मात्, एवम्भूते उत्तराफाल्गुनीलक्षणे नक्षत्रे जातानि। मोक्षकल्याणकस्य स्वातौ जातत्वादिति ।" (ट) तपागच्छीय पं० शान्तिविजयगणि लिखित (ले० सं० १६६७ लाहोर) कल्प सूत्र अन्तर्वाच्य स्तबक 3 में लिखा है:"श्रमणतपस्वी भगवंत ज्ञानवंत श्रीमहावीरदेव, तेहना पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रे हुआ। xxx x x स्वातिनक्षत्रे मोक्ष पहुँता श्रीमहावीरदेव।" (ठ) उपकेश (कंवला) गच्छीय ककुदाचार्य सन्तानीय उपाध्यायं रामतिलक . शिष्य गणपति लिखित (ले. सं. १७२४) कल्पसूत्र बालावबोध में लिखा है:"ए श्रीकल्पसूत्र तणइ प्रारंभइ जगन्नाथ श्रीमहावीरतणां छ कल्याणिक बोलियइ, तद्यथा-"ते णं का० पंचहत्थुत्तरे होत्था"-तिणइं समई श्रमण भगवंत श्री महावीररहइं पञ्चकल्याणिक उत्तराफाल्गुनि नक्षत्रि चन्द्रमा तणइ. संयोगि प्राप्त हुंतइ हुआं ।xx-ए संक्षिप्त वाचनाइं जगन्नाथ तणां छ कल्याणिक जाणिवा ।" (ड) आञ्चलिक मेरुतुङ्गसूरि रचित सूरिमन्त्रकल्प के पूर्वलिखित वर्धमानविद्या कल्प में लिखा है:"उपाध्यायादिपदचतुष्टयेन नवपदस्थापनादिनप्रतिपन्नषट्स्वपि महावीरकल्याणकेषु यावज्जीवं विशेषतपः कार्यम् ।" १. शान्तिनाथमंदिरस्थ अञ्चलगच्छ भंडार, कच्छ मांडवी पत्र १५० २. डाबडा नं० १८ ३. जोधपुर केशरियानाथ भंडार डा० २०,प्र० न०६ ४. महेसाणा उपाश्रय का भंडार, पत्र ६१ ७४ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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