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क्षत्राभिधायकमपीति । न च प्रस्तुतव्याख्यानस्यानागमिकत्वं, आचाराङ्गभावनाध्ययने श्रीवीरकल्याणकसूत्रस्यैवमेव व्याख्यातत्वात् ।"
इस पाठ से राज्याभिषेक के कल्याणक न होने में सन्देह का अवकाश ही नहीं रहता । यदि मानलें कि राज्याभिषेक भी कल्याणक है, तो प्रायः प्रत्येक तीर्थङ्कर का राज्याभिषेक हुआ है; अतः प्रत्येक का भी मानना होगा । यही क्यों ? भगवान् ऋषभदेव ने युगलिक धर्म का निवारण कर सुमङ्गला के साथ पाणिग्रहण किया, यह लौकिक व्यवहार से एवं गार्हस्थ्य-धमरूप श्रेष्ठ कार्य होने से इसे भी कल्याणक मानने में क्या आपत्ति है ? यदि इस प्रकार से कल्पनाओं का आश्रय लिया जाय, तो पांच ही नहीं अपितु कितने ही कल्याणक प्रत्येक तीर्थंकर के हो सकते हैं, परन्तु शास्त्रविहित न होने से इन्हें कल्याणकों की कोटि में किसी भी शास्त्रकार ने नहीं रखा, अतः राज्याभिषेक भी कल्याणक की कोटि में नहीं आ सकता।
५. कतिपय शास्त्रीय प्रमाणों के उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं । अब खरतरगच्छीय आचार्यों के लिखित प्रमाण छोड़कर केवल अन्यान्य-गच्छीय आचार्यों के ही प्रमाण प्रस्तुत करते हैं:__ (क) श्री पृथ्वीचन्द्रसूरि कल्पटिप्पन में लिखते हैं:
"हस्त उत्तरो यासां ताः, बहुवचनं बहुकल्याणकापेक्षम्, इत्यत्र पञ्चसु पञ्च,
स्वातौ षष्ठमेव ध्वन्यते।" (ख) आचार्य विनयचन्द्रसूरि कल्पनिरुक्त (र० १३२५) में लिखते हैं:"हस्त उत्तरो यासां ता हस्तोत्तरा-उत्तरफल्गुन्यो, बहुवचनं बहुकल्याणकापेक्षम् । तस्यां हि विभोश्च्यवनं १, गर्भाद् गर्भसंक्रान्तिः २, जन्म ३, व्रतं ४, केवलं ५
चाभवत् । निर्वृतिस्तु स्वातौ ६।" (ग) तपगच्छीय आचार्य कुलमण्डनसूरि कल्पावचूरिका में मूल पाठ की व्याख्या
करते हुए लिखते हैं:"श्रीवर्द्धमानस्य षण्णां च्यवनादीनां कल्याणकानां हेतुत्वेन कथितौ तौ वा
इति ब्रूमः।" (घ) आचार्य जयचन्द्रसूरि अपने कल्पान्तर्वाच्य में लिखते हैं:
"प्राषाढे सितषष्ठी, त्रयोदशी चाश्विने सिता चैत्रे।
मार्गे दशमी सितवैशाखे सा कात्तिके च कूहुः ॥१॥ वीरस्य षट्कल्याणकदिनानि इति ।" (च) तंपगच्छीय आ० श्रीसोमसुन्दरसूरि या तत्शिष्य स्वप्रणीत कल्पान्तर्वाच्य में
लिखते हैं:“यत्राऽसौ भगवान् महावीरो देवानन्दाया. कुक्षौ दशमदेवलोकगतप्रधानपुष्पोत्तरविमानादवतीर्णः, पञ्चकल्याणकानि उत्तराफाल्गनिनक्षत्रो जातानि तद्यथाx x x x स्वातिनक्षत्रे परिनिर्वृतः-निर्वाणं प्राप्तो भगवान् मोक्षं गत इत्यर्थः । एतानि भगवतो वर्द्ध मानस्य षट्कल्याणकानि कथितानि।"
वल्लभ-भारती ]
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