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१. गर्भहरण अतिनिन्द्य कार्य होने से आश्चर्य (अच्छेरा) है।' जो आश्चर्य हो वह मंगलस्वरूप कल्याणक नहीं माना जा सकता। २. शास्त्रों में किसी भी स्थल पर श्रमण भगवान् महावीर के छ कल्याणकों का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। यदि कहीं उल्लेख है भी तो वह कल्याणक शब्द से अभिहित नहीं है किन्तु वस्तु या स्थान शब्द से कथित है। ३. पञ्चाशक शास्त्र में भूतानागत और भविष्यद् रूप त्रिकालभावि चौवीस-चौवीस तीर्थंकरों के कल्याणकों की संख्या-परिमाण सूचन करने में महावीर के पाँच कल्याणक माने जाते हैं । टीकाकार अभयदेवसूरि ने भी पांच ही लिखे हैं। यदि गर्भापहार छठा होता तो उसकी संख्या क्यों नहीं देते। ४. यदि 'पंच हत्थुत्तरे होत्था साइणा परिनिव्वए' आदि से गर्भहरण को भी कल्याणक स्वीकार करते हो तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार 'पंच उत्तरासाढे अभीई छठे होत्था' से ऋषभदेव का राज्याभिषेक नामक कल्याणक भी मानना चाहिये । ५. शास्त्रों में तथा किसी भी आचार्य द्वारा इसका उल्लेख न होने से यह प्रतिपादन अशास्त्रीय है, अतः उत्सूत्र प्ररूपणा है और इसका प्रतिपादन सर्वप्रथम जिनवल्लभ गणि ने ही किया है।
इन विकल्पों का समाधान (उत्तर) क्रमशः इस प्रकार है:
१. यदि हम आश्चर्य को कल्याणक के रूप में स्वीकार न करें तो हमारे सन्मुख कई बाधायें उपस्थित होती हैं । शास्त्रों में जहां दश आश्चर्यों (अच्छेरों) का वर्णन है, उसमें १६ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ का स्त्री रूप में होना भी एक आश्चर्य माना गया है। यदि नारी का तीर्थकर होना आश्चर्य के अंतर्गत आता है तो सहज ही प्रश्न उठते हैं कि, क्या उस नारी का तीर्थंकरत्व मंगलदायक हो सकता है ? क्या उस नारी के जीवन की अमूल्य घटनाएं कल्याणक के रूप में स्वीकार की जा संकती हैं? क्या उसकी तीर्थंकर उपाधि कल्याणकारक हो सकती है ? क्या उसका शासन चतुर्विध संघ के लिये कल्याण-कारक हो सकता है ? यदि भगवान् महावीर का गर्भापहरण कल्याणक-स्वरूप नहीं हो सकता तो नारी का तीर्थकरत्व कैसे कल्याणक-स्वरूप हो सकता है ? ।
इसी प्रकार दूसरा आश्चर्य उत्कृष्ट देहधारी १०८ मुनियों के साथ भगवान् ऋषभदेव का सिद्धिगमन (निर्वाण प्राप्त करना) है। ५०० धनुष परिमाण की देह उत्कृष्ट देह मानी जाती है। इस प्रकार के उत्कृष्ट देहधारी जीव एक समय में एक साथ दो ही मुक्ति जा सकते हैं, यह शास्त्रीय नियम है। दो से अधिक एक समय में मूक्ति नहीं जा सकते, इस शास्त्रीय मर्यादा का उल्लंघन होने से इसे आश्चर्य मानते हैं, तो क्या हम इसको आश्चर्य मानकर मंगलदायक कल्याणक स्वीकार नहीं कर सकते ? यदि हम इसे कल्याणक स्वीकार
१. "नीचैर्गोत्रविपाकरूपस्य प्रतिनिन्धस्य प्राश्चर्यरूपस्य गर्भापहारस्यापि कल्याणकत्वकथनं अनुचितम्"
कल्पसुबोधिका पृ. ६ इसी पर टिप्पन करते हुए सागरानंदसूरि लिखते हैं - 'गर्भापहारोऽशुभः । अकल्याणक भूतस्य गर्भापहारस्य" कल्पकिरणावली । करोषि श्रीमहावीरे, कथं कल्याणकानि षट् । यत्तेष्वेकमकल्याणं, विप्रनीचकुलत्वतः ।।१।। (गुरुतत्त्वप्रदीप)
वल्लभ-भारती ]
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