________________
८८
जैनत्व जागरण.....
के रूप में पूज्य मानते हैं । रेशफ ही ऋषभ है जो नाभि और मरूदेवी के पुत्र थे। नाभि चेल्डियन गॉड नाबू और मरूदेवी मुरु है। आरमेनिया के रेशफ निःसन्देह जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव है। सीरिया के एक नगर का नाम ऋषाका उन्हीं के नाम पर है । सोबियत आरमेनिया में एक शहर का नाम तेशाबानी है। बेबीलोनिया के शहर इस्बेकजूर ऋषभ का ही अपभ्रंश है । १२०० ई. पूर्व की ऋषभदेव की एक कांस्य मूर्ति साइप्रेस के अलासिया से निकली है.। यूनानी
अपोलो की प्राचीन मूर्ति ऋषभदेव की मूर्ति से मिलती है । टर्की के बोगास्कोई, में मलाटिया में तता इस्बुकजूर में मुख्य हिट्टट्री लोगों के प्रमुख देवता के रूप में ऋषभदेव की मूर्तियाँ मिली हैं। सोवियत आरमेनिया के कारमीर ब्लर में खुदाई के दौरान तथा तेशाबानी शहर में खुदाई में कुछ मूर्तियां प्राप्त हुई है उनमें ऋषभदेव की कांस्य मूर्ति भी है।"
यह माना जाता है कि हजारों साल पहले Arabia में घने जंगल और गहरी नदियां होती थी । यद्यपि आज यह पूरा रेगिस्तान है । उस समय वहा हाथी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था। आज भी हाथीपथ अरेबिया में मदीना जाने वाले रास्ते पर देखा जा सकता है ।
_ “Elephants......formed a prominent feature of the cavelecades to leave an indelible impression on the long memory of the Arabs.”
An ‘Elephant Road' is traceable in Arabia (leading to Medina).
दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ का लांछन हाथी है । मैसोपोटामिया के हाथी कभी विश्व प्रसिद्ध थे । अतः हम निश्चित रूप से अजितनाथ तीर्थंकर को इस क्षेत्र से संबंधित मान सकते है । गजनी शब्द भी गज से आया है जिसका अर्थ है हाथी । हजरत मोहम्मद का जन्म भी हाथी के वर्ष में हुआ, ऐसा कहा जाता है। यह दुर्भाग्य की बात है कि इस्लाम धर्मावलम्बियों ने हजरत मोहम्मद के पहले के इतिहास को नष्ट कर दिया । इस क्षेत्र में हमें जो प्रमाण हाथी के मिल रहे है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह क्षेत्र तीर्थंकर परम्परा से जुड़े हुए थे । अरेबिया से प्राप्त सरस्वती की मूर्ति वहाँ श्रमण प्रभाव को प्रमाणित करती हैं क्योंकि सरस्वती की सबसे प्राचीन मूर्तियाँ हमें जैनधर्म में ही मिली