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जैनत्व जागरण......
जा सकता है कि कैलाश पर्वत किसी नार्कशी रूप में ऋषभदेव से सम्बन्धित है ।
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सन् २००६ की कैलाश यात्रा के समय तिब्बत में सागा से कैलाश जाते समय रास्ते में गाँव के मकानों के बाहर स्वस्तिक और चंद्रबिन्दु बना हुआ देखा गया । पूछने पर यह पता चला कि ये प्राचीन परम्परा से चला आ रहा है । स्वस्तिक को एक मंगल चिन्ह के रूप में सभी संस्कृतियों
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में अपनाया गया है “The Swastik is one of the oldest symbol still existing in history it is a sacred and Prehistoice symbol that predates all formal religons known to human kind, this common heritage of mankind. The connection between almost all devoloped cultures."
इस स्वस्तिक का सबसे प्राचीनतम आधार क्या है यह गहन शोध का विषय है ।
जैन परम्परा के बाद बौद्ध धर्म से पूर्व तिब्बत में बौन धर्म प्रचलित था जिनके अनुसार कैलाश ' A Nine Storey' Swastik Mountain कहलाता हैं ।
स्वस्तिक की विभिन्न व्याख्याएँ उनको तीर्थंकरों से जोड़ती हैं ।
प्रत्येक धार्मिक साहित्य तथा स्थान विशेष में स्वस्तिक की व्याख्या हमें अलग-अलग रूप में मिलती है । (१) ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य मना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है । जिस प्रकार सारे जीव जगत को प्राण देने वाला सूर्य है उसी प्रकार सारे जीवों में ज्ञान के उपदिष्टा तीर्थंकर भगवान होते हैं और सृष्टि के चारों दिशाओं में इन्हीं के ज्ञान की दुन्दभी बजती है ।
(२) यास्क के अनुसाव स्वस्तिक अविनाशी ब्रह्मा का नाम है। आत्मा का स्वरूप अविनाशी है इस बात को इसी स्वस्तिक भवन में विराजमान तीर्थंकर सबसे अच्छी तरह समझते हैं और बताते हैं
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(३) अनेक देशों में स्वस्तिक का अर्थ अच्छा या मंगल करने वाले के रूप में माना गया है तीर्थंकरों की वाणी सर्वदा मंगलमय होती है इसलिये