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________________ जैनत्व जागरण...... ऋचायें' नामक लेख में लिखा है "ऋग्वेद में न केवल सामान्य रूप से श्रमण परम्परा और विशेष रूप से जैन परम्परा से सम्बन्धित अर्हत्, अरिहन्त, व्रात्य, वातरसनामुनि, श्रमण आदि शब्दों का उल्लेख मिलता है अपितु उसमें अर्हत् परम्परा के उपास्य वृषभ का भी उल्लेख शताधिक बार मिलता है । मुझे ऋग्वेद में वृषभवाची ११२ ऋचाएँ प्राप्त हुए है । सम्भवत: कुछ और ऋचाएँ भी मिल सकती है ।" डॉ. राधाकृष्णन, प्रो. जिम्मर प्रो. वार्डियर आदि कुछ जैनेतर विद्वान इस मत के प्रतिवादक है कि ऋग्वेद में जैनों के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से संबंधित निर्देश उपलब्ध होते हैं । बौद्ध साहित्य के धम्मपद में उन्हें (उसभं परवं वीर - ४२२ ) कहा गया है । ७३ अत: यह ऋषभ परम्परा निश्चित रूप से वेदों से प्राचीन है । इसलिए यहीं आदि परम्परा भी है । 1 डॉ. बुद्ध प्रकाश ने अपने ग्रन्थ भारतीय धर्म एवं संस्कृति में लिखा है, "महाभारत में विष्णु के सहस्त्रनामों में श्रेयांस, अनन्त, धर्म, शान्ति और सम्भव आते हैं और शिव के नामों में ऋषभ, अजित, अनन्त और धर्म मिलते हैं | विष्णु और शिव दोनों का एक नाम सुब्रत दिया गया है । ये सब नाम तीर्थंकरों के हैं । ऐसा लगता है कि महाभारत के समन्वयपूर्ण वातावरण में तीर्थंकरों को विष्णु और शिव के रूप में सिद्ध कर धार्मिक एकता करने का प्रयत्न किया गया था । इससे तीर्थंकरों की प्राचीन परम्परा सिद्ध होती है ।" जैन साहित्यानुसार एवं कर्नल जैम्स टॉड ने भी खेती के प्रारम्भ कर्ता ऋषभदेव को माना है । टॉड ने अपने ग्रन्थ एनल्स ऑफ राजस्थान में लिखा है कि ‘Arius Montanus’ नामक महाविद्वान् ने लिखा है नूह कृषि कर्म से प्रसन्न हुआ और कहते हैं इस विषय में वह सबसे बढ़ गया । इसलिए उसी की भाषा में वह इश आद मठ अर्थात् भूमि के काम में लगा रहनेवाला पुरुष कहलाया । इश- आद- मठ का अर्थ पृथ्वी का पहला स्वामी होता है ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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