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________________ ७४ जैनत्व जागरण..... आगे टॉड साहब कहते हैं "उपर्युक्त पदवी, प्रकृति, निवास स्थान जैनियों के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के वृत्तांत के साथ ठीक बैठ सकते हैं जिन्होंने मनुष्यों को खेती बाड़ी का काम और अनाज गाहने के समय बैलों के मुंह को छीकी लगाना सिखाया !" कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने ऋषभदेव को इस अवसर्पिणी काल के पहले राजा, पहले त्यागीमुनि, और पहले तीर्थंकर बताया है। उनकी स्तुति करते हुए उन्होंने लिखा है आदिमं पृथिवीनाथं आदिमं निष्परिग्रहम् । आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥ ऋषभदेव कर्मभूमि और धर्म के आद्य प्रवर्तक होने के कारण आदिनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं। उनके विषय में प्रो. वी. जी. नायर ने लिखा ऋषभदेव का निर्वाण स्थल : अष्टापद जैन परम्परा में तीर्थंकरों की अन्य कल्याणक भूमियों की अपेक्षा निर्वाण कल्याणक भूमि को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। जैन साहित्य में पाँच तीर्थों की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है। जिमें आबू, अष्टापद, गिरनार, सम्मेत शिखर और शत्रुज्जय उल्लेखनीय है । अष्टापद जो ऋषभदेव की निर्वाण भूमि है उसके प्रमाण रूप में जो भी जैन एवं जैनेत्तर साहित्यिक स्रोत हमारे पास है उससे अष्टापद की अवस्थिति का निश्चित रूप से पता चलता है। वैदिक पुराणों में ये संदर्भ बिखरे पड़े हैं जिसके अनुसार नाभि और उनकी पत्नी मरुदेवी से ऋषभ नाम के पुत्र हुए जो योग में, तप में, क्षत्रियों में, राजाओं में श्रेष्ठ थे। उनके सौ पुत्र हुए और हिमालय के दक्षिण क्षेत्र को अपने पुत्र भरत को सौंप दिया तथा भरत के नाम से ही इस क्षेत्र का नाम भारत पड़ा । दूसरी महत्वपूर्ण बात जो हमें इन पुराणों से पता चलती है वह है कि आदिनाथ भगवान जो सब देवों के पूजनीय थे, सर्वज्ञ थे, जिनके चरण कमल का ध्यान कर हाथ जोड़कर सभी देवता तत्पर रहते
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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