________________
जैनत्व जागरण.....
हज़ारों तीर्थंकर-प्रतिमाएं चुन्नी पहनाकर अन्य धर्मी लौकिक देवी-देवताओं के रुप में पूजी जा रही है। आज भी सैंकड़ों जैन तीर्थ अपनी वास्तविक पहचान खोकर मिथ्यात्व के केन्द्र बने हुए हैं। आज भी लाखों जैन शास्त्रग्रंथ विभिन्न कोनो में पडे होकर दीमकों का भोजन बन रहे हैं । जिम्मेदार कौन?? इसकी जिम्मेदारी आज हम सभी को लेनी होगी । वर्षो-वर्षों पूर्व हमारे पूर्वजों को किस प्रकार के द्वेष का, आक्रमण का सामना करना पड़ा होगा, कहना रुठिन हैं । लेकिन निश्चित ही बहुत भयंकर परिस्थितियाँ रही होंगी। वर्तमान में जो-जितना हमें मिला है, उससे सन्तोष नहीं करना है किन्तु जैन धर्म के गौरव को पुनः विश्व व्यापक बनाने का संकल्प लेना
भविष्य निर्माण हेतु जैनत्व जागरण के पथ पर ।
- हमारे परम आराध्य तीर्थंकर भगवंत 'सवि जीव करूँ शासन रसी' रुपी स्वपर कल्याण की परम मंगल-परमोत्कृष्ट भावना भाते हैं । जैनत्व जागरण का मूल आधार भी यही हैं । यथा – किस प्रकार में अपना प्रत्येक श्वास जिनधर्म-जिन-शासन को समर्पित कर सकूँ? किस प्रकार में जिनाज्ञा की आराधना कर स्वयं के जीवन को आत्मोन्नति के पथ पर ला सकूँ ? किस प्रकार में एक-एक व्यक्ति को प्रभु के इस शासन से जोड़ सकूँ? अपना चिन्तन-मनन तथा ऊर्जा-शक्ति को इसी उच्च दिशा में लगाकर जैनधर्म का गौरव पुनः स्थापित किया जा सकता है । जिनशासन के सतत् विस्तार में अनेकों आचार्य, साधु-साध्वी जी मंडल भिन्न-२ क्षेत्रों में कार्यरत् हैं। विगत वर्षों में जैनत्व जागरण के पथ पर चले अथवा चल रहे विभूतियाँ अनुमोदनीय कार्य करते रहे हैं -
वर्षों पूर्व आचार्य विजयानंद सूरि जी (आत्माराम जी)ने पंजाब में जैन धर्म की छाप छोड़ी तथा विश्व के अनेकों विद्वानों को जैनधर्म से परिचित कराया । सराक आदि क्षेत्रों में पूर्व मुनि प्रभाकर विजय जी के, अब आचार्य सुयश सूरि जी, आचार्य मुक्तिप्रभ सूरि जी के विचरण से अच्छी जागृति