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जैन धर्म
विश्व का सबसे प्राचीन धर्म |
जैन धर्म
आत् से परमात्मा बनने का धर्म
जैन धर्म - सुबोध विशाल वाङ्मय का धर्म ।
यह वही सर्वोत्कृष्ट धर्म है जिसकी प्ररूपणा ऋषभदेव जी - महावीर स्वामी पर्यन्त तीर्थंकरों ने की है । यह वही सर्वश्रेष्ठ धर्म है जिसका सवहनसंवर्धन सुधर्मा स्वामी- हेमचंद्राचार्य जैसे अपरिमित धुरंधरों ने किया है । यह वही सर्वमुखी धर्म है जिसका संरक्षण सम्राट सम्प्रति-सम्राट कुमारपाल जैसे परमार्हतों ने किया है । जैन धर्म का जाज्वल्यमान - देदीव्यमान इतिहास आज भी हमें प्रकाश प्रदान करता हैं । धरातल का सत्य हमें आलोकित करता है कि विगत शताब्दियों से जिस प्रकार भस्म ग्रह प्रभावेण जैन धर्म - जैन समाज का ह्रास हआ है, वह दयनीय है - निन्दनीय है । चरमतीर्थपति शासननायक भगवान् महावीर स्वामी जी के शासन में धर्मद्वेषियों द्वारा जिस प्रकार आक्रमण हुए हैं, उससे निस्संदेह रुप से हमें अपूरणीय क्षति हुई हैं । अब समय हैं उठने का जगने का । वर्षों से हम जिस चिरनिद्रा के वशीभूत हुए है, उसे तोड़े का समय है । जैन धर्म की दिव्य पताका पुनः दिग्दिगत फहरे, उसके लिए आवश्यकता है - 'जैनत्व जागरण' की । अतीत के अंधकार में खोता जैन धर्म का इतिहास
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जैनत्व जागरण.......
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युगादिदेव श्री ऋषभदेव परमात्मा ने समूचे विश्व की सभ्यता-संस्कृति को पुष्पित - पल्लवित किया जिसके प्रमाण आज भी विश्व की सभी संस्कृतियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से मौजूद हैं । उनके मार्ग से निकले भिन्न मत विभिन्न धर्म उन्हीं के वंशज है, किन्तु ऋषभदेव जी की मूल परम्परा को जीवन्त रखने वाले, उनके आत्मस्पर्शी उपदेशों को सजीव रखने वाले धर्मो में मात्र जैन धर्म ही शेष हैं । करोड़ो - अरबों की संख्या वाला जैन समाज आज संकुचित होकर हज़ारों-लाखों में रह गया है । यह संख्या मात्र जैन धर्मानुयायी बंधुओं की ही नहीं है, बल्कि जिनप्रतिमाओं - जिनशास्त्रों के संरक्षण के अभाव में उनकी संख्या भी आशातीत घटी है। आज भी