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जैनत्व जागरण.......
से गहन शोध और अध्ययन द्वारा सही रूप में सामने लाने की आवश्यकता है । आज भी जो सबसे प्राचीन लिखित शिलालेखीय प्रमाण भारत में मिलता है, वह जैन धर्म से सम्बंधित है का है, अजमेर में वड़ली के पास ।
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जैन धर्म न केवल भारत का वरन् विश्व का प्राचीनतम आध्यात्मिक धर्म है इसकी प्राचीनता के सम्बन्ध में काफी प्रमाण दिये जा चुके है । वास्तव में जैन धर्म विश्व की आदि सभ्यता का स्त्रोत है और भारत की सभ्यता और संस्कृति का एक ऐसा अंग है जिसे निकाल देने से हमारी संस्कृति का रूप एकांगी और विकृत रह जायेगा । यह निर्विवाद है कि यह धर्म ना तो विश्व के किसी धर्म के विरोध में प्रारम्भ हुआ ना ही किसी का रूपान्तर है यह आर्हत्-संस्कृति अध्यात्म प्रधान है तथा विश्व को भारत की देन है । जो प्राग्वैदिक काल से विश्व ने अपनायी तथा विश्व के सब देशों में इसका प्रचार हुआ, यहाँ तक कि वेदों, स्मृतियों, पुराणों और उपनिषदों में भी इस संस्कृति को सर्वोच्च स्थान मिला । ७वी शताब्दी तक आर्हत् संस्कृति सारे विश्व में फैली रहो ।
कवि सूरदास जी के शब्दों में
बहुरि रिसम बड़े जब भये नाभि राज देवनको गये । रिसभ राज परजा सुख पायो जस ताको सब जग में छायो ॥ लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ॥१॥
इस लोक में स्थित सम्पूर्ण वस्तुओं के तत्त्वज्ञान का यथार्थरूप बताकर तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले, धर्म रूपी तीर्थ की स्थापना करने वाले, राग, द्वेष आदि कषायों को जीतने वाले, तीनों लोकों में पूज्य ऐसे चौबीस केवलज्ञानी तीर्थंकरों को मैं वन्दना करता हूँ । ये चौबीस तीर्थंकर
हैं
उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च । पउमप्पहं, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥