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________________ जैनत्व जागरण..... सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस वासुपुज्जं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संति च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥ तीर्थंकर परम्परा के आज भी इतने प्रमाण मिलते हैं कि हम निःसंदेह कह सकते हैं कि यही आदि परम्परा, मानव सभ्यता और संस्कृति का मूल स्रोत रही थी। कालान्तर में इसी से निकलकर लोगों ने अलग-अलग धार्मिक मत चलाये जो विभिन्न धर्म के रूप में प्रचलित हुए । उन सब मतों का आधार ये तीर्थंकर परम्परा ही रही । इस उच्च कोटि की परम्परा को धूमिल करने का प्रयास हजारों वर्षों से चल रहा है । इसी में से पृथक हुए लोगों ने अपनी-अपनी मान्यताएँ स्थापित करने के उद्देश्य से मूल को नष्ट करने की चेष्टा की और आज भी ये चल रही है। अभी हाल ही में भारत के पालिताना तीर्थ (सौराष्ट्र) में कुछ अराजक जैन विद्वेषी लोगों ने पहाड़ के ऊपर गणेश और शिव की आकृति के पत्थर रख दिये और जैन समाज के दो नवयुवकों को अगवा कर लिया तथा इस शर्त पर उनको छोड़ा कि यहा पर उनका मंदिर बनवाना होगा। इसी प्रकार गिरनार तीर्थ में भी धीरेधीरे ऐसा ही किया जा रहा है। इसके पीछे हजारों वर्षों से चली आ रही मानसिक संकीर्णता और धर्म के नाम पर जेहाद करने वालों का यह कार्य है। यहाँ पर प्रचलित ऐतिहासिक महापुरुषों के चरित्रों को अपनी मान्यतानुसार परिवर्तित कर शूद्र जाति (वाल्मीकि) के बीच प्रचलित करवाकर समाज से नैतिकता को समाप्त करना तथा प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों को परिवर्तित करने का दुष्परिणाम आज समाज में स्पष्ट देखा जा रहा है । जैन ऐतिहासिक साक्ष्यों को नष्ट करना, मंदिरों एवं मूर्तियों को नष्ट तथा परिवर्तित करना, क्षेत्र पूजा को लिंग पूजा में बदल देना आदि सैकड़ों उदाहरण हैं जो प्रमाणित करते हैं कि किस तरह एक उच्चकोटि की सांस्कृतिक परम्परा को नष्ट एवं परिवर्तित किया गया और आज भी किया जा रहा है। इस विषय में डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी का यह वक्तव्य बहुत महत्त्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने लिखा है कि- "Myths and legends of Gods and
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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