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जैनत्व जागरण.....
जैन आम्नाय तीर्थ-यात्रा परम्परा आदि कालीन है । जिसके प्रमाण जैन साहित्य में हमें भरपूर मिलते हैं । आज भी यह परम्परा उसी रूप में देखने को मिलती है । यह जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण विशेषता है तथा उसका प्राचीनता का प्रतीक भी । इसी यात्रा में जैन श्रावकों द्वारा जिन व्रतों का पालन किया जाता है और जिन नियमों का अनुसरण किया जाता है, ठीक वही नियमों तथा व्रतों का पालन हज यात्रा में भी किया जाता है। हज यात्री वैसे ही वस्त्र पहनते हैं जैसे कि जैन साधु या मुनि पहनते हैं कुरान के ४६वें अध्याय में जिन सम्प्रदाय का वर्णन आता है जिसमें मोहम्मद साहब के उनके मिलने का वर्णन है । मक्का के इतिहास में लिखा है कि नग्न साधु वर्ष में एक या दो बार अवश्य मक्का की यात्रा करने आते थे।
चार्ल्स बरटिलस ने अपनी किताब 'Mysteries from forgotton world' में उत्तरी अमेरिका की खोज यात्रा के विषय में लिखा है जिसमें चीनी यात्रियों के मैक्सिकों जाने का वर्णन है । तथा उन्होंने अपने लेखों में वहाँ की चित्रकला में कमल और स्वस्तिक आदि प्रतीकों का वर्णन किया है। मैक्सिकों से प्राप्त कायोत्सर्ग दिगम्बर मूर्ति, स्तूप तथा माया और एजटेक सभ्यता के अवशेषों में जो मूर्तियाँ तथा प्रतीक चिन्ह मिले हैं उसकी सादृश्यता आश्चर्यजनक रूप से जैन तीर्थकरों की मूर्तियों तथा उनके प्रतीको से है। इस सन्दर्भ में विशेष खोज की जानी चाहिए।
इस प्रकार हम देखते है कि जैन धर्म सिर्फ भारत में ही नहीं पूरे विश्व में फैला हुआ था। इसका प्रभाव विश्व की सभी संस्कृतियों पर किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान देखा जा सकता है सिर्फ आवश्यकता है वहाँ के प्राचीन इतिहास के गवेषणा की । आज जो खोजे हो रही हैं
औरजो इतिहासकार इनको कर रहे हैं दुर्भाग्यवश वो जैन धर्म से अपरिचित हैं । अधिकांश विदेशी इतिहासकार अज्ञानवश जैन धर्म को बौद्ध धर्म के रूप में मान लेते हैं जिसके अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। ये विदेशी इतिहासकार तो अनजान थे लेकिन भारतीय इतिहासकार पूर्वाग्रही थे इन्होंने भारतीय होते हुये भी भारत की मूल संस्कृति को अनदेखा किया । आर्य जाति की श्रेष्ठता स्थापित करने में विलुप्त हो रही प्राचीनतम सांस्कृतिक धरोहरों को फिर