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जैनत्व जागरण......
गए । वेदों के अर्थ करने में शंकर माधवाचार्य और सायनाचार्य ने अपने अपने भाष्य में बहुत अर्थ मन कल्पित भी लिखे हैं । पाणिनी तथा पांतजलि ने भी भाष्य लिखे हैं परन्तु ये जो नवीन भाष्य रचे गये, इनसे भी शास्त्रों की सत्यता नष्ट हो गयी ।
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पाणिनी अष्टाध्यायी व्याकरण से भी पूर्व प्राचीन जैन व्याकरण के साक्ष्य मिलते हैं | पाणिनी ने अपने रचे व्याकरण में अपने से पूर्व अनेक भाष्यकारों का वर्णन किया है जिनमें शाकटायनाचार्य का नाम भी है । शाकटायनाचार्य के भाष्य के मंगलाचरण से स्पष्ट है कि वो जैन मत के थे । जैनेन्द्र व्याकरण और एन्द्र व्याकरण ये भी पाणिनी से पूर्व के हैं । पातंजलि ने भी जो अष्टध्यायी के ऊपर भाष्य रचे रहैं वह भी जैनेन्द्र, इन्द्र, शाकटायनादिव्याकरणानुसार रचा है। जैन तीर्थंकरों की मान्यताओं के विषय में भी जैनेत्तर विद्वानों द्वारा यह भ्रामक प्रचार कर सन्देह पैदा करने का प्रयत्न किया गया । गुजरात के महान् साहित्यकार श्री चन्द्रशेखर दीवानजी के अनुसार “जैन कथाओं के विषय में कुछ विद्वानों ने इस प्रकार की मान्यता प्रचलित की कि जैन धर्माचार्यों ने हिन्दु इतिहास और पुराण ग्रन्थों से महापुरूषों के नाम तथा उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ लेकर उन्हें जैन परम्परा के अनुकूल परिवर्तित किया । उनके वैज्ञानिक ग्रन्थ इतिहास की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखते । पर उनके ग्रन्थों के रचनाकारों ने अपने प्राचीन ग्रन्थों से उपलब्ध जानकारी को ही नाम निर्देश के साथ प्रस्तुत किया है ।
कलकत्ता विश्व विद्यालय के भाषा शास्त्री Dr. Chaturjya ने भी लिखा है - “Myths and legends of gods and heroes curents among Austric and Dravidians long attending the period of Aryans advent in India (1500 B.C.) appeared to have been rendered in the Aryan Language in late and garbled or improved version according to themselves to Aryan Gods and heroes worlds and it is these myths and legends to Gods, sages which are largely found in puranas."