________________
जैनत्व जागरण.....
complete view of the gradual progress of Bhartiya life through the ages. The Bhartiya Historians give undue weightage to the vedic and puranic sources - They by and large failed to present the balanced view of the Bhartiya history with the critical and comparitive use of these sources. Just for this reason, they have failed to rightly appreciate the foreign sources and specially the greek sources” R. K. Jain from the ‘Preface of Ancient India as described by Megasthenes' (Revised by R. C. Jain).
यदि विदेशी लेखकों के वर्णनों को पूर्ण तर्कसंगत नहीं भी माने तो भी एक विश्वसनीय आधार माना जा सकता है तथा उनकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता । मैनस्यनीन, टोलमी, एरियन, एवं प्लीनी आदि इतिहासकारों के लेखों में हमें आर्य पूर्व भारतीय संस्कृति का जो चित्रण मिलता है वह एक ऐसा प्रमाण है जो हमे आदि संस्कृति के मूल स्तोत्र को समझने में या स्थापित करने में मार्गदर्शक हो सकता है। मैगस्थनीज की कलम से जैनधर्म
भारत का इतिहास विधिवत् रूप से सिकन्दर के आक्रमण के समय से प्राप्त होता है। ब्रह्म आर्यों के आक्रमण के पश्चात् यूनानी आक्रमण का बहुत महत्त्व है । सिकन्दर के साथ अनेक यूनानी विद्वान् भी भारत आये थे। मैथस्थनीज़ जो चन्द्रगुप्त के दरबार में सेल्यूकस का दूत बनकर आया था, उसकी 'इन्डिका' एक विश्वसनीय ग्रन्थ मानी जाती है जो आज पूरी उपलब्ध नहीं है फिर भी उसके कुछ भाग मिलते हैं जो भारत की तत्कालीन संस्कृति और इतिहास जानने का एक बड़ा साधन हैं ।
"The Greek records which shows that the Alexander the great had heard of the wise sraman, The naked monks whom the Greeks referred as Sophists”... Dr. Bhuvanendra Kumar.
मैगस्थनीज के उल्लेखों में समनीक शब्द श्रमण शब्द का अपभ्रंश है। श्रमणों से सिकन्दर अत्यन्त प्रभावित था । कालोनिस और दण्डामिस