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जैनत्व जागरण.......
हो उस काल का वैसा ही वर्णन इतिहासकारों को करना चाहिये । दुर्भाग्यवश हमारे देश के इतिहासकारों ने अपने देश के इतिहास के साथ जितना अन्याय किया है उतना शायद अन्य कहीं भी नहीं हुआ है । इस सन्दर्भ में मैं यह कहना चाहूँगा कि जैन धर्म के साथ भारतीय इतिहासकारों ने बहुत ही अन्याय किया है। उन्होंने वेदों और पुराणों को ज्यादा महत्व दिया है । प्राप्त इतिहास द्वारा प्राग्वैदिक की संस्कृति और समाज के विषय में कुछ भी पता नहीं चलता । यदि श्रमण साहित्य वैदिक लेखों से अलग दिखते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर वैदिक स्त्रोतों को ज्यादा महत्त्व दिया गया है । पुरातत्व वेत्ताओं की अल्पप्रज्ञता, पक्षपात तथा उपेक्षा के कारण भी जैन पुरातत्व सामग्री को अन्य मतानुयायियों का रंग दे दिया गया है । हम यह भी कह सकते हैं कि भारतीय इतिहासकार वैदिक और श्रमण स्रोतों को समान रूप से देखने में असफल रहे हैं । यहाँ तक कि उन्होंने उन प्राचीन विदेशी इतिहासकारों के वर्णनों को भी अनदेखा कर दिया जिन्होंने समकालीन भारतीय समाज का चित्रण किया है । प्राचीन विदेशी स्रोतों तथा लेखकों के वर्णनों को हम इसलिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं कि वो ना तो यहाँ के शासक थे ना ही ब्राह्मण या श्रमण थे । उनके लेख सूचनापरक हैं तथा भारतीय इतिहास को सही रूपसे जानने एवं लिखने के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गये हैं ।
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"The available histories of Bharata suffer from three defects. Firstly they present a biased view... the court historians and the subject historians are un reliable Secondly, almost all the historians neglected the pre-Aryan history of Bharat. Three foreign conquests the Aryan, The Turko Afgan and the British changed the course of history and the texture of the Cutlture and civilization of Bharata. The history and texture of the culture civilization of the Pre-Aryan Bharata is conveniently forgotten. Thirdly, The Indian historians are generall undialectical and unchronoligical in writing the history of Bharat specially its cultural History. the reason lies in the fure of the Bhartiya historians in taking full and