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________________ जैनत्व जागरण..... २९३ इस समय पाड़ा में तीन देवालय बने हुए है । इन पर नीचे आलोचना समीक्षात्मक व चिन्तनात्मक की जा रही है (१) ईंट का देवालय : यही देवालय सबसे प्राचीन है । इसकी ऊँचाई लगभग ४० फुट है । ऊपर के आमलक अंश का काफी सारा भाग नष्ट हो चुका है । ऊपर का कलश और ध्वजदंड भी लुप्त हो चुका है । लगता है पहले इसकी ऊँचाई ४५ फुट की थी । यह एक रेख देवालय है । इसकी निर्माण शैली में ओडिसी प्रभाव सुस्पष्ट है । सबसे बड़ी बात है कि सम्पूर्ण मंदिर पर ही आलंकारिक सजावट की गई है। आज उसमें से कुछ ही बचा है, बाकी सब गल चुका है । बहुतों का कहना है कि यह मंदिर कोर्णाक के सूर्य मंदिर जैसा अलंकृत था । अगर संरक्षण कियाजाता तो आज यह एक सर्वोत्कृष्ट पुरातात्विक आकर्षण होता । परन्तु उससे पहले ही सब कुछ खत्म हो चुका है । अभी भी नृत्य कर रही नारी, अपेक्षारत नारी, यक्ष-यक्षिण, चलता हुआ घोड़ा, गंगा, यमुना, द्वारपाल, कमल की पंखुड़ियाँ, चार पंखुड़ियों वाला फूल, 1. अतीत की कोई कहानी आदि को मंदिर में उकेरा गया है । इस देवालय की निर्माण प्रकृति लगभग बान्दा या तेलकूपी के मंदिर जैसा है, लेकिन यह आधा नष्ट हो चुका है, क्योंकि दूसरे देवालयों से यह अधिक प्राचीन है और इसके पत्थर तेलकूपी में प्रयोग किए प्रस्तरखंड़ों से अधिक नर्म है । हो सकता है, अलंकरणों के उकेरने की सुविधा के लिए ऐसे नर्म पत्थर इस्तेमाल में लाए गए हो । देवालय दक्षिण मुखी, द्वार पर कलाकारी से भरा कोई पत्थर का फ्रेम नहीं है । हो सकता है, पहले सामने की तरफ पत्थर का बरामदा हुआ करता था, जो आज नहीं 1 | पत्थर के बने विशाल स्तम्भ सारे नजर आते है । पाड़ा का यह देवालय जैनों द्वारा ही प्रतिष्ठित है । इसी कारण दूसरे देवालय जैसे इसके तीन तरफ तीन जगहें बनी हुई है | किसी तीर्थंकर या देवी - देवताओं की मूर्ति इनमें बहुत पहले रखी जाती थी, पर आज कुछ भी शेष नहीं है । प्रकोष्ठ के दोनों तरफ दो नारी मूर्ति चँवर हाथ में लिए खड़ी है । यह जैन स्थापत्य की एक विशेषता मानी जाती है । इसके साथ ही मंदिर पर नाना प्रकार I
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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