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________________ जैनत्व जागरण....... • तीर्थकर मूर्ति : लगभग २ फुट ऊँची दो तीर्थंकर मूर्तियाँ वेदी पर प्रतिष्ठित की गई है। दोनों ही मूर्तियों कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़ी है। दोनों तरफ दो और दो चार ऋषभनाथ की मूर्ति खुदी हुई थी । सिन्दूर का लेप पड़ते-पड़ते लांछन चिह्न पूरी तरह घिस चुके है । समझा नहीं जा सकता कि ये तीर्थंकर की मूर्तियां है । इनकी बनावट पाकबिड़रा या बारहमास्या की मूर्तियों जैसी थी । २९२ इन मूर्तियों के अलावे और विभिन्न सब मूर्तियों के टूटे अंश एक क्षय प्राप्त बैल की मूर्ति, गंधर्व-गंधर्वी के टूटे ढाँचे सब लाकर इस वेदी पर रखे गये है ये मूर्तियाँ षष्ठी मैया के नाम से ग्रामीण लोगों में पूजी जाती है। गाँव की महिलाएँ संतान - संतति की कामना से यहाँ मन्नतें माँगती है। दुखद रुप से यहाँ भी जैन देवी देवताओं का हिन्दुत्व में रूपांतरण हो चुका है पाड़ा का देवालय पुरुलिया शहर से ३० कि.मी. की दूर पर पाड़ा ग्राम बसा है। इसी गाँव में पुरुलिया की सबसे प्राचीन जैन संस्कृति के अवशेष के रूप में पत्थर से बना देवालय खड़ा है । काल की चपेट में मंदिर क्षय प्राप्त हो चुका है, जिससे आज उसका मूल रूप ही खो चुका है। प्राचीन मानभूम के इतिहास को टटोलने पर देखा जा सकता है कि अतीत में यह गाँव पंचकोट के राजाओं की राजधानी थी । ९६२ ई. के समयकाल में यह राजपरिवार पांचेत पहाड़ के पास उठकर चला आया । पाड़ा में इज़माएर नाम की जो विशाल पोखरी है, वह किसी प्राचीन राजा द्वारा प्रतिष्ठित की गई होगी । सम्भव है, कि पंचकोट राजाओं से पहले यहाँ मान राजाओं का शासन था । मान राजाओं के साथ पंचकोट के राजाओं की विरोधिता हुई । इससे मानराजाओं को स्थानान्तरित होना पड़ा । पंचकोट राजाओं की राजधानी के रूप में पाड़ा जाना जाता था । इसका प्रभाव गाँव के चारों तरफ बनी नाली को देखने से पता चलता है । फिलहाल वह भी नष्ट हो चुकी हैं।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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