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________________ २९४ जैनत्व जागरण..... के मनुष्य चेहरों को उकेरा गया है । इस देवालय के ऊपर की आमलक शिला, पुरुलिया के दूसरे देवालयों की शिलाओं से काफी छोटा है । इसका बाकी अंश भी आकार में छोटा है। (२) ईंट का देवालय : पहले कहे गए देवालय से थोड़ी ही दूर पर यह देवालय बसा हुआ है। इसका भी ऊपर का अंश नष्ट हो चुका है । बचे हुए अंश की ऊँचाई करीब ४५ फुट की है । इस देवालय की आकृति हुबहू देओलघाटा के देवालय से मिलती जुलती है । प्रवेश का द्वार त्रिकोणाकृति का है। पहले किसी समय चूने पर नाना प्रकार के आकृति और अलंकरण बनाए गए होंगे, पर उसका थोड़ा सा ही अंश बचा हुआ है । फिर भी जितना बचा है, उसकी सुंदरता पर हमें मुग्ध होना पड़ता है। मंदिर के अलंकरण को शिल्पकारों ने छोटे-छोटे देवालयों के रूप को ईंटों के द्वारा प्रस्फुटित किया है। रथ देवालय की आकृति जैसे है, और देवालय की अनुकृतियों को देवता की मूर्ति स्थापना के लिए व्यवहार में लाया गया है । लेकिन एकाधिक स्थानों के बीच वाली जगह ही सबसे बड़ी है। पाड़ा के ईंट के देवालय में जैविक चूने के लेप पर फूल, पत्ते, मोतियों की माला, देव-देवियों की मूर्ति, नक्शे आदि उकेरे गए हैं । शिल्पकारी के अनुपम उदाहरण के रूप में ताश के पत्ते जैसे चैत्य गवाक्ष को देखा जा सकता है। इन सबसे यह अनुमान किया जा सकता है कि देउलघाटा और पाड़ा के देवालय एक ही गोष्ठी के थे एवं लगता है वे समकालीन भी थे । दसवीं से ग्यारहवीं सदी के बीच वे रहे होंगे। इस समय पाड़ा के पत्थर से बने देवालय के भीतर कोई विग्रह नहीं दिखता, पर ईंट पर से बने देवालय के भीतर स्थित है एक षड़भुजा देवीमूर्ति । यह मूर्ति आकार में छोटी होते हुए भी एक गोल शिलापट पर खुदी हुई है। इस तरह की शिला तेलकूपी और भोगड़ा में नजर आती है। ये जैन आम्नाय की सम्यक्त्वी देवी सिद्ध होती हैं, परन्तु इस समय में उदयचंडी के नाम से आम लोगों द्वारा पूजी जाती है । हर मंगलवार धूमधाम से देवी की पूजा होती है ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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