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जैनत्व जागरण.....
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लड़कियों के साथ विवाह किए जाने की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ रही हैं ।
___ स्थानीय पाठशालाओं का अभाव होने के कारण जैन बच्चे अपने धर्म के विषय में बहुत कम ज्ञान रखते हैं, अतः जैन पाठशालाएँ स्थापित करने की प्रथा को पुनर्जीवित करना श्रेयस्कर है। जैन बच्चे अपनी पढ़ाई को सुचारु रूप से चलाने केलिए सुदूरवर्ती शहरों में चले जाते हैं । वहाँ छात्रावासों में सभी प्रकार का आहार ग्रहण करने वाले बच्चों के बीच रहने के कारण उनके संस्कार गड़बड़ हो जाते हैं । अतः इस प्रकार के शिक्षा केंद्रों के समीप जैन छात्रावासों के निर्माण की वृहत् योजना बनानी चाहिए।
जैनेत्तर समाज में जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने हेतु जनकल्याणकारी योजनाएँ बनाकर दूसरों का हृदय जीतने के उद्देश्य से जैनों को आगे आना चाहिए । धर्मनेताओं को इस विषय में गंभीर चिंतन करना चाहिए । जैन समाज अल्पसंख्यक हैं, किंतु भारत सरकार या प्रादेशिक सरकारें अल्पसंख्यकों को जो सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं, उसका शतांश भी जैनों को उपलब्ध नहीं है, न ही वे इस विषय में कोई प्रयत्न करते हैं। अधिकांश अल्पसंख्यक कार्यालयों के कर्मचारियों को यह ज्ञात ही नहीं है कि जैन भी अल्पसंख्यक हैं । जैन समाज जब भारत सरकार को प्रभूत मात्रा में इनकम टैक्स आदि देता है तो वही समाज अल्पसंख्यकों को प्राप्त होने वाली सुविधाओं का हकदार क्यों नहीं है? असली कारण यह है कि हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं ।
महाराष्ट्र आदि राज्यों में कुछ जातियाँ ऐसी हैं, जो पहले जैन थीं, अब उन्होंने जैन धर्म छोड़ दिया है या जैनों ने उन्हें अपनी समाज से बाह्य कर दिया है। ऐसी जातियों को पुनः जैन धर्म के मार्ग पर चलकर समाज की मूलधारा में लाना चाहिए । मंदिरों और सामाजिक संस्थाओं में जैन कर्मचारियों की नियुक्ति होनी चाहिए ।
प्रति सप्ताह एक ऐसा दिन अवश्य निश्चित होना चाहिए जिसमें सामूहिक पूजन पाठ, प्रवचन आदि हों और उसमें पूरे समाज की भागीदारी हो तथा मद्यपान, सामूहिक रात्रिभोज, रात्रि में विवाह जैसे प्रवृत्तियों पर रोक लगाई जाए ।