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________________ जैनत्व जागरण.... बड़े शहरों के जैनियों को ऐसे कुछ गाँव गोद लेकर उनके हितार्थ योजनाएँ बनानी चाहिए । अपने व्यापारिक संस्थानों में सराक भाइयों को सर्विस देनी चाहिए और उनके साथ समता का व्यवहार करना चाहिए । जैनों की कुछ जातियाँ ऐसी हैं, जिनमें वैष्णवों के साथ परस्पर रोटी, बेटी का व्यवहार प्रचलित है। इनके गोत्र भी एक से हैं । अग्रवाल जाति ऐसी ही जाति है। पहले वैष्णव अग्रवाल जाति ऐसी ही जाति है। पहले वैष्णव अग्रवाल लडकिया जैन परिवार में आकर जैन धर्म को आत्मसात् कर लेती थीं, अतः कोई विशेष हानि नहीं होती थी । आज यदि कोई वैष्णव अग्रवाल पुत्री जैन परिवारों में आती है तो वह परिवार . के शेष सदस्यों को जैन धर्म छोडने का उपक्रम करती है। यदि जैन पत्री अग्रवाल घर में जाती है तो कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः उसका वैष्णवीकरण हो जाता है। परिणामतः हजारों अग्रवाल जैन धर्म छोड़ चुके है। इस ओर भी विशेष जागरूकता की आवश्यकता है। अमेरिका और कनाडा में लगभग ढाई लाख जैन हैं । इनकी पुरानी पीढ़ी तो जैन धर्म में दृढ़ थी, किंतु नई पीढ़ी शिथिल होती जा रही है। अतः विदेशों भाषा में जैन साहित्य प्रकाशित करना चाहिए । विद्वानों और त्यागियों को विदेश में जाकर वहाँ के जैनों का स्थितिकरण करना चाहिए। समाज में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि जैन धर्म भारत के बहुसंख्यक धर्म की एक शाखा है। यह एक निर्मूल और भ्रांत धारणा है । वास्तविकता यह है कि जैन धर्म एक मौलिक, स्वतंत्र तथा विश्व का प्राचीनतम धर्म है । हमारे देव, शास्त्र और गुरु हिंदू धर्म से पृथक् हैं । हमारा साहित्य स्वतंत्र और मौलिक है। भारत की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में जैन साहित्य रचा गया है। ___अजैनों के साथ विवाह संबंध स्थापित होने का मूल कारण दहेज प्रथा है । एक कुप्रथा के निराकरण हेतु समाज के युवक जैन युवतियों को आगे आना चाहिए । यद्यपि हमारे समाज में भ्रूणहत्या जैसी कुप्रथा का अभाव है, किंतु लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का अनुपात घट रहा है । सर्विस को अत्यधिक महत्व मिलने के कारण कुछ कम शिक्षित या अर्द्धशिक्षित जैन लड़कों को सुयोग्य कन्या नहीं मिल पाने के कारण दूसरे धर्म की
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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