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________________ जैनत्व जागरण..... ६. जैन समाज की घटती हुई जनसंख्या - एक चिंता का विषय किसी समय जैन धर्म और जैन समाज भारत में प्रमुख जाने जाते थे। जनसंख्या के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि पारसी और जैनों की जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ रही है, जबकि अन्य समुदायों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । अकबर के समय में जैन धर्मानुयायी पांच करोड़ थे, जबकि उस समय देश की जनसंख्या भी बहुत कम थी । जैन समाज का ध्यान इस ओर नहीं है। हमारा अधिकांश धन भवन निर्माण, पंचकल्याणक, मूर्ति प्रतिष्ठा और विधि-विधान में खर्च हो रहा है । ज्ञानकांडी जैन धर्मकर्मकांडी होता जा रहा है । मूर्ति और मंदिर के साथ पूजकों की संख्या भी निरंतर बढ़नी चाहिए, तभी मंदिरों और मूर्तियों की अभिवृद्धि की सार्थकता है । किसी विदेशी विद्वान ने घटती हुई जैन संख्या पर गंभीरतापूर्वक विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस धर्म में अपने व्यक्तियों का निष्कासन तो है, किंतु दूसरे मत को मानने वाले का प्रवेश नहीं है । भगवान की सभा को समवसरण कहा जाता था क्योंकि उसमें सभी जातियों का प्रवेश विहित था । कालांतर में राजसत्ताओं के जैन धर्म से विमुख होने के कारण जैनों को दक्षिण और पूर्वी भारत में तेजी से हास देखना पड़ा और शेष जैनों को अपना अस्तित्व कायम रखना मुश्किल हो गया । बंगाल, बिहार और उड़ीसा के मूल जैनों को राजनैतिक विप्लव के समय सुदूरवर्ती जंगली इलाकों में अपना घर बसाने के लिए विवश होना पड़ा । कालांतर में वे यह भूल गए कि वे जैन हैं और उनके पूर्वज जैन धर्मानुयायी थे । इतना सब होने के बाद भी उनकी जीवन-शैली में जीवदया, अहिंसा, शाकाहार, शुद्ध खान-पान के संस्कार मिले रहे है। आज वे सराक (श्रावक) के नाम से प्रसिद्ध हैं और उनकी जनसंख्या लाखों में है। उनके स्थितिकरण की बहुत बड़ी आवश्यकता है। __हमारे साधुओं का चातुर्मास प्रायः सराक क्षेत्रों में नहीं होता । ग्रीष्मकालीन अवकाश में यहाँ संस्कार शिविरों का आयोजन होना चाहिए ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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