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________________ २४ ४२. कृष्ण युग युग में अवतार लेंगे । ४३. प्रभु की इच्छा - कृपा और मर्ज़ी से ही सबकुछ होता है । सब आत्मा भगवान के अधीन है । ४५. वैदिक धर्म में सतीप्रथा थी और आज कई जगह पर जारी है । ४६. वैदिक धर्म कहता है हाथी के पाँव तले मरना अच्छा लेकिन जैन मन्दिर का आश्रय लेना बुरा । ४७. रांधण छट्ठ बड़ा त्योहार है । बासी खाने की यह सबसे बड़ी त्योहार है । ४८. संतो के मृत शरीर को समाधि दी जाती है । अग्निदाह नहीं किया जा सकता । ४९. सत्व, रजस् और तमस् तीन गुणों की धारणा है । आत्मा के चौरासी लाख अवतार होते हैं । ४४. ५०. जैनत्व जागरण...... ४२. युग युग में मोक्ष पहुँचनेवाले कभी अवतार नहीं लेते । ४३. प्रभु कभी भी इच्छा नहीं रखते प्रभु की मर्जी भी कर्म के सामने नहीं चलती । ४४. सब आत्मा खुद के अधीन है । ४५. जैन धर्म में पहले से ही सती प्रथा ना थी न है . और ना होगी. ४६. जैन धर्म किसी की भी व्यक्तिगत निंदा टीका नहीं करतीं । ४७. जैन धर्म में बासी खाने को महापाप कहा गया ४८. संतो के कालधर्म पश्चात श्रावकजन उनके मृतदेह को अग्निसंस्कार करते हैं । ४९. जैन धर्म में ये तीन गुणो की धारणा है ही नहीं. ५०. जन्म जन्मांतर की निश्चित संख्या नहीं होती । आत्मा के पुरुषार्थ पर आधारित है ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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