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४२. कृष्ण युग युग में अवतार लेंगे ।
४३. प्रभु की इच्छा - कृपा और
मर्ज़ी से ही सबकुछ
होता है ।
सब आत्मा भगवान के अधीन है ।
४५. वैदिक धर्म में सतीप्रथा थी और आज कई जगह पर जारी है ।
४६. वैदिक धर्म कहता है हाथी के पाँव तले मरना अच्छा लेकिन जैन मन्दिर का आश्रय लेना बुरा ।
४७. रांधण छट्ठ बड़ा त्योहार है । बासी खाने की यह सबसे बड़ी त्योहार है ।
४८. संतो के मृत शरीर को समाधि दी जाती है । अग्निदाह नहीं किया
जा सकता ।
४९. सत्व, रजस् और तमस् तीन गुणों की धारणा है ।
आत्मा के चौरासी लाख
अवतार होते हैं ।
४४.
५०.
जैनत्व जागरण......
४२. युग युग में मोक्ष पहुँचनेवाले कभी अवतार नहीं लेते । ४३. प्रभु कभी भी इच्छा नहीं रखते प्रभु की मर्जी भी कर्म के सामने नहीं चलती ।
४४. सब आत्मा खुद के अधीन है ।
४५. जैन धर्म में पहले से ही सती प्रथा ना थी न है . और ना होगी.
४६. जैन धर्म किसी की भी व्यक्तिगत निंदा टीका नहीं करतीं ।
४७. जैन धर्म में बासी खाने को महापाप कहा गया
४८. संतो के कालधर्म पश्चात श्रावकजन उनके मृतदेह को अग्निसंस्कार करते हैं ।
४९. जैन धर्म में ये तीन गुणो की धारणा है ही नहीं.
५०. जन्म जन्मांतर की निश्चित संख्या नहीं होती । आत्मा के पुरुषार्थ पर आधारित है ।