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________________ जैनत्व जागरण..... २६९ खैर, राज का मानभूम, पुरुलिया की मंदिर नगरी है । ९वीं से १३वी सदी तक आज के पुरुलिया में, इन अनगिनत गांवों में सुविशाल मंदिर बने हुए थे। इन मंदिरों में अपूर्व शैली व अलंकारों से सुसज्जित मूर्तियां बनी हुई थी । देव, देवी व तीर्थंकरों की मूर्तियों का सौन्दर्य इतना मनमोहक था, कि इन खंडहरों के धूल-धूसरित मूर्तियों को जब हम आज देखते है, तो चकित से रह जाते हैं । मन में बारबार प्रश्न उठता है-इसके प्रतिष्ठाता कौन थे ? समस्त पुरुलिया के पुरातात्विक इलाकों का भ्रमण करते हुए यह देखा गया है कि इन पुरा क्षेत्रों का लगभग अस्सी फीसदी भाग, जैन संस्कृति से जुड़ा हुआ है । इसलिए, पूर्व सम्भावना है, कि इन मंदिरों के प्रतिष्ठाता भी जैन ही होंगे, और वे मुख्यतः सराक जाति के पूर्वज है । ईं. टी. डाल्टन के अनुसार, यही मानभूम के आदि आर्यवंशजात है । "...........and another held by the people who have left many monuments of their ingenuity and piety in the adjaining district of Manbhum and who were certainly the earliest Aryan setters in this part of India, the Saraks and fains."........ मिस्टर वैलेनटाईन वल के अनुसार सराक जाति के लोग बड़े पुराने जमाने से ही ताम्बे के काम काज के साथ जुड़े हुए थे । इन्हीं सराकों के प्रभाव से ही सिंहभूम धलभूमि (भूम) के इलाकों में ताम्रयुग का प्रादुर्भाव हुआ । बाद में ताम्बे के खानों की मिलकियत को लेकर छोटा नागपुर के 'हो' जाति के साथ सराकों में विवाद उठ खडा हआ। एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगॉल के प्रकाशन से भी पता चलता है कि सराक जाति के लोगों ने ही पहली बार ताम्बे की खानों को खोज निकाला था । ताम्बे के व्यवसाय या व्यापार के आधार पर ही, वे जीवन-बिताते थे । "........the more adventurous Saraks or say Jains, having alone penetrated the jungles where they were rewarded with the discovery of copper, upon the working
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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