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________________ २६८ जैनत्व जागरण..... मान बचानेके लिए पंचकोट राजा के राजत्व में स्थलान्तर हुए थे । पंचकोट राजा का राजत्व यानि वर्तमान पुरूलिया जिले का उत्तर पूर्वीय अँचल, जहाँ आज भी बृहत संख्यामें श्रावकवर्ग (सराकवर्ग) निवास करते है । कुछ कुछ श्रावक तो दूरदूर भी निकल गये थे, उनका अस्तित्व भी है । वे-बाकुंडा-वर्धमान, सावतालपरगणा, राँची एवं उड़ीसा में जा बसे थे । इस घटना के बाद से सराकोमें से तीन शाखा की उत्पत्ति हुई थी (i) अठारह सिका (ii) महत् (iii) खा...। अठारह सिका यानि जो सराक लोग घटना के तुरन्त कुछ लिए बिना स्थलान्तर हुए थे, वे और “महत्" जो सराकलोग घर जमीन के मोहवश बाद में स्थलान्तर हुए थे । खा...खा धातुसे बना है, आहारादि ग्रहण करनेके पश्चात जो निकले थे, वे "महत्' की तरह पश्चात् स्थलान्तर हुए थे...। पंचकोटमें सराकोंका वास प्रारंभ (पंचकोट यानि मानभूम (पुरुलिया) जिलांतर्गत एक राजत्व का नाम है, जो पुरूलिया के उत्तर पश्चिम इलाकों को केन्द्र करके है ।) धलभूम अन्तर्गत मानबजार एवं तत्पार्श्ववर्ती इलाकों को छोडकर सराकगण पंचकोट राजा के राजत्व में आये थे। पंचकोट यानि पुरूलिया जिले के पश्चिम-उत्तरी भागमें रघुनाथपुर, पाडा एवं काशिपुर थाना अन्तर्वती क्षेत्र...। उस समय पंचकोटमें हिन्दु-धर्म का प्रभुत्व था । जैनों का उल्लेख वेद पुराण में न होने से हिन्दुगण सराकोंको घृण्यजाति मानते थे । उनकी नजर में सराकजाति अछूतजाति कहलाती थी। शोच विवाह आदि क्रियाकर्म करवाने के लिए हिन्दु धर्मावलम्बी आदि कोई भी जाति (ब्राह्मण, हजाम आदि) सराकों के घर नही आती थी, अतः खोर-कर्म, पूजापाठ आदि कार्य सराकगण स्वयं ही कर लेते थे । ई.स. १६५२ के बाद मणिलाल जब पंचकोट का राजा हुआ था तब सराकोंकी इस अवदशा का अवसान हुआ था, यानि राज परिवारकी ओर से पुरोहित-हजाम आदि मिले थे ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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