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जैनत्व जागरण.....
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है, जिन तीर्थंकरोंका निर्वाण सम्मेतशिखरजी में हुआ था, उन तीर्थकरों की मूर्तियों की प्रतिष्ठा छोटे छोटे देवलोमें की गई थी। इतिहास एवं जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि सराकोंके द्वारा ही उस तीर्थ स्वरूप मंदिर का निर्माण किया गया था । पायराचालि
मानबजारसे ७ कि.मी. की दूरी पर पायराचालि गाव है। गांव के नाम से पता चलता है वहां पर बृहत् (बडा) कबूतरखाना था । पायरा यानि "कबूतर", चालि यानि “चाल" जनश्रुति है कि वहां पर सराक लोंगो के द्वारा पक्षी सेवा होती थी। और दूसरे पक्षियों की अनुकंपा की जाती थी । बडी संख्यामें सराक लोंगो का उस इलाके में प्रचुर संख्यामें वास था । मानबजार की घटना को केन्द्र करके सराक लोगों ने कुछ होगा । सम्भवतः ई.स. १५९३ में इस शहर का नाम मानबजार पडा था । अकबर के सेनापति मानसिंह एवं बिहार के सूबेदार के नाम से इस शहर का नाम पडा था ।
. “In 1589 or 1590 during the reign of Akbar, Raja Mansingh marched his troops from Bhagalpur through the western hills to Burdwan enroute to reconquer Orissa and again a couple of years later he send troops through Jharkand to Midnapore; On both the occasions he must have passed through portions of this district.... Mansingh again sent out his troops, in 1593 from Bihar to Midnapore by what has been described as a western route through Jharkand” (West Bengal District Gazetteers; Op. Cit. P.P. 90,236)
ई.सं. १५९३ में अकबर के निर्देश से जब मानसिंह उड़ीसा जीतकर मानबजार में आकर अवस्थान किया था, उस समय वहाँ सराकों का आधिपत्य था । किसी सराककी सुन्दरी कन्या को देखकर मानसिंहने मोहित होकर उसपर बलात्कार किया था । इस अघटन से सराक लोग वहाँ से अपना