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जैनत्व जागरण.....
लोगों में किसी प्रकार का पहल है । ये दुर्लभ मूर्तियां चोरबाजारुओं के हाथों बिककर विदेशों में चली जा रही है। आज से बच्चों के खेलने का सामान है। सदियों पहले जिन कुशल मूर्तिकारों ने इन पत्थरों को तराशकर इन जीवन्त परमात्म प्रतिमाओं का निर्माण किया था, आज उन मंदिरों मूर्तियों को हमे कितनी बेरहमी से नष्ट कर रहे हैं । लेकिन हमें अपने शिक्षित या सभ्य होने पर न जाने कितना गर्व होता है । आज भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में एवं पुरातात्विक ऐतिहासिक हर दृष्टिकोण से पुरुलिया के ये खंडहर कितने असीम महत्व की जानकारी, विलुप्त होती हुई कड़ियाँ, अनसुलझे सवालों का जवाब, अपने में बसाए हुए है, और हम है कि इन्हें गूंगा ही मार डालना चाहते हैं । खुद को संस्कृतिवान कहते समय, काश ! एकबार हमें पुरुलिया के ये खंडहर याद आते ।
पुरुलिया में जैन धर्म का विस्तार एवं निदर्शन पाकविरा (वर्तमान पंचा थानान्तर्गत)
पुरूलिया शहर से ३० कि.मी. दूरी पर "पाकविडार" गांव है । वहाँ जैन धर्म के स्मृति चिन्ह है । स्नेह के प्रतीक बनकर श्री महावीर आदि प्रभु की मूर्ति विद्यमान है। अपूर्व स्थापत्य
ई.सं. १८७३ की साल में Beglar साहेब ने इस क्षेत्र का परिदर्शन किया, और उन्होने अपने ग्रन्थ में बहुत से मन्दिरोंके बारेमें उल्लेख किया है। बाकी सारे ध्वंसस्तुप आच्छन्न पडे है । प्राचीन मन्दिरके प्रांगण में छोटे बडे जिन बिंब है, तथा नाना आकृति की बहुत सी देवी देवता की मूर्ति भी देखने को मिलती है । एक सात हाथ की अखंड जिनेश्वर की मूर्ति आज भी विद्यमान है। चारों तरफ से पत्थरों से बंधा हुआ एक तालाब (सरोवर) भी है। इससे अनुमान होता है कि उस तालाब के पानी से भगवान की प्रक्षाल पूजा आदि होती होगी । Beglar साहेब का कहना है कि पाकविडरा एक समय सुपरिकल्पित जैन संस्कृति का केन्द्र था । एक बहुत्तम देवल के चारों और बीस दूसरे छोटे छोटे देवल है। इससे अनुमान होता