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जैनत्व जागरण.......
से ? हजारीबाग जिले के दुधापानी पहाड़ पर तीन भाई-उदयमान, धौतमाल व अजित मान के नाम खुदे हुए मिलते है । क्या इन तीन भाईयों के नाम पर ही जगह का नाम मानभूम पड़ा ? किसी-किसी का कहना है कि मान किसी राजवंश का नाम है । यही वह वंश है, जिसका शासन मानभूम, सिंहभूम और उससे जुड़े उड़ीसा के कुछ अंचलों पर था । ओडू जाति की एक शाखा के रूप में मानवंश का निरूपता किया गया था । अध्यापक मिराशी के अनुसार मान उपाधि वाले राजा, राष्ट्रकूट वंश के एक शाखा के रूप में थे । इनके आदि पुरुष का नाम मानांक है । चौथी शताब्दी के अंतिम काल में इनका शासन था । करीब सौ वर्षों के बाद उनके परपोते (प्रपौत्र) अभिमन्यु ने वहाँ राजधानी स्थापित की । उसका नाम रखा गया मनपुर या मानपुर । आज मानपुर सतारा जिले में अवस्थित है । शतारा में करीब ढाई सौ साल इस वंश ने राज किया था । मानांक के बेटे का नाम देवराजा था । देवराजा के तीन बेटे थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम मान राजा था । मानपुर नगर के केन्द्र में रखकर मानांग ने जिस राज्य की प्रतिष्ठा की थी मध्ययुग के प्रथम पर्व में वही मानदेश कहा जाता था । वीरभूम, बाँकुड़ा, मोदिनीपुर, २४ परगना और पुरुलिया जिलों में मान राजवंश के विभिन्न अवशेष बिखरे हुए है । हमारे इस पुरुलिया जिले में ही मानपुर के नाम से सात गाँव है
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आज यह मानभूम लोकसंस्कृति में असन्न समृद्ध अंचल है । सारा साल लोक उत्सव, लोकनृत्य के आनन्द में ही यहाँ के निवासियों का दिन कटता है । मानभूम की एक और विशेषता है यहाँ के फैले बिखरे हुए पुरातात्विक अवशेष । पुरुलिया के गाँवों में घूमते समय कही न कहीं सदियों पुराने खंडहर, ध्वंसावशेष मिलते है, वे है - पाकबिड़रा, तेलकूपी, बुधपुर, बारमास्या, लाखरा, टुश्यामा, देउली, महादेवबेड्या, रालिबेड्या, छड़रा, पाड़ा, देउलगिड्या, गजपुर, क्रोशजुड़ी, धड़ांगा, बनरांगपुर, गुइमा, हरबना आदि । न जाने कितने और पुरातात्विक अवशेष मिट्टी के नीचे दबे पड़े हैं । न सरकार को इनकी फिक्र है, और न इन सुप्राचीन खंडहरों, मूर्तियों को धूप या बारिश या प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिये इलाके के