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जैनत्व जागरण.....
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परिवर्तन करवाना है ।
__ आचार्य जिनसेन कृत महापुराण के 'जिनसहस्रनाम' स्तोत्र में ऋषभदेव का एक नाम जगन्नाथ भी दिया है अर्थात् जगत' के नाथ । जगन्नाथ शब्द जिन-नाथ शब्द का अपभ्रंश भी हो सकता है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जगन्नाथ की प्रतिमा ही कलिंग जिन की प्रतिमा है और पुरी का मंदिर ही मूलतः सम्राट खारवेल द्वारा बनवाया गया जिनालय है ।
खंडगिरि-उदयगिरि गुफाएँ एवं मंदिर - हाथी गुफा शिलालेख की १४वीं पंक्ति से ज्ञात होता है कि सम्राट खारवेल ने ११७ गुफाएं बनवाई थीं। लेकिन वर्तमान इतिहासकारों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की गिनती के आधार पर खंडगिरि पर्वत पर १५ और उदयगिरि पर १८ गुफाएँ हैं। खंडगिरि पर चार जिनालय हैं जो लगभग २०० वर्ष प्राचीन हैं ।
खंडगिरि पर्वत की सभी गुफाएँ स्थापत्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण
गुंफा संख्या ३ (अनंत गुफा) में साढ़े २ फुट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा है । यहाँ साथिया इत्यादि जैन चिह्न और एक शिलालेख भी मौजूद है। यह गुफा खंडगिरि पर्वत की महत्वपूर्ण गुफाओं में से एक है। .
गुफा संख्या ८ नवमुनि गुफा है । इस गुफा में पद्मासन मुद्रा में ९ तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं । गुफा में पांच शिलालेख भी मौजूद हैं।
गुफा संख्या ८ का नाम बारह-भुजी गुफा है । खंडगिरि पर्वत पर स्थित यह सबसे महत्वपूर्ण गुफा है । गुफा के बरामदे में दायीं ओर दीवार पर बारह भुजाओं वाली दो तीर्थंकर शासन देवियों की प्रतिमा उकेरी हुई है। इसीलिए इसगुफा का नाम बारह-भुजी पड़ा । इसमें भगवान पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में ३ फुट ७ इंच ऊँची प्रतिमा है । यह इस गुफा की सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसके अलावा गुफा की एक दीवार पर १८ पद्मासन प्रतिमा उकेरी हुई हैं । अन्य दीवारों पर भी तीर्थंकर भगवान की प्रतिमाएँ और शासन देवियों की प्रतिमाएं बनी हुई हैं ।