SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनत्व जागरण...... २५९ w ऊपर कुछ वर्षों पूर्व शीशे का फ्रेम लगवा दिया गया है । इस प्रतिमा के यहाँ होने के कारण के विषय में यदि वहाँ के पंडों और पब्लिक रिलेशन ऑफिसर से चर्चा करो तो वे उत्तर देते हैं कि यह मंदिर आज से २१२२ सौ वर्ष पहले महाराजा खारवेल ने 'कलिंग जिन' की मूर्ति को विराजमान करने के लिए बनाया था । खारवेल महाराज जैनी थे । उन्होंने सर्वसामान्य के दर्शन की सुविधा के लिए एक जैन प्रतिमा विराजमान करवाई । इसमें तो संदेह नहीं कि 'श्री क्षेत्र परिचय' के अनुसार जगन्नाथ पुरी का वर्तमान मंदिर मूलतः खारवेल द्वारा निर्मित वहीं जिनालय है । किंतु प्रश्न यह है कि कलिंग जिन की वह मूर्ति कहाँ गई और कलिंग जिन का यह जिनालय जगन्नाथ का मंदिर कैसे बन गया ? वर्तमान में जगन्नाथ मंदिर में लकड़ी से बनी हुई तीन मुख्य मूर्तियाँ हैं । लकड़ी से बने हुए ये मात्र कलेवर हैं | हर वर्ष जगन्नाथ यात्रा के पश्चात् जगन्नाथ की मूर्ति का कलेवर परिवर्तित किया जाता है । लकड़ी के कलेवर के हृदय स्थान में विराजमान एक छोटी प्रतिमा को निकालकर पंडा नए कलेवर में रखकर उसको बंद कर देता है । इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि जो पंडा कलेवर परिवर्तन करता है उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी जाती है और वह पुराने कलेवर में से टटोलकर मूर्ति को नए कलेवर में विराजमान कर देता है। कहा जाता है कि अगर इस दृश्य को कोई देख ले तो उसकी और उसके संपूर्ण परिवार की मृत्यु हो जाती है । संभवतः कलेवर के अंदर विराजमान छोटी मूर्ति ही कलिंग जिन की मूर्ति है । कलेवर परिवर्तन को जनसाधारण के समक्ष न करने का कारण प्रतिमा के रहस्य को गोपनीय रखने का विषय हो सकता है । I I जहाँ तक जिनालय के जगन्नाथ मंदिर में परिवर्तन का प्रश्न है यह आद्य शंकराचार्य के समय हुआ होगा जब उन्होंने चार दिशाओं में चार धामों की स्थापना की जोकि मूलतः सभी जिनालय ही थे । जिस कलिंग में सुदीर्घ काल तक जैन धर्म राष्ट्र धर्म रहा उसमें अब एक भी प्राचीन मंदिर का शेष न होना एक शोध का विषय है । इसका कारण कलिंग में जैन धर्म के अनुयायियों का होना और जैन विद्वेषी राजाओं द्वारा मंदिर
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy