SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ जैनत्व जागरण..... श्री जगन्नाथ मंदिर परिचालना समिति द्वारा प्रकाशित 'श्री क्षेत्र परिचय' में मंदिर निर्माण के बारे में कुछ इस प्रकार वर्णन मिलता है- 'पंडू वंश के राजा उदयन के पुत्र थे इंद्रबल । वे इद्रधुम्न के नाम से अधिक परिचित थे । राजा इंद्रधुम्न इसी स्थान के मूल निवासियों को साथ लेकर पहले श्री जगन्नाथ जी की पूजा-अर्चना किया करते थे । उन दिनों श्री जगन्नाथ जी का नाम नीलमाधव के रूप में परिचित था । इसके कई वर्षों के बाद मगध के नंदवंशीय राजा महापद्मनंद इस देवता के प्रति इतने आकर्षित हुए कि उन्हें सबकी आखों से बचाकर मगध ले गए थे। ईसा के १०० वर्ष पूर्व कलिंग के तत्कालीन महापराक्रमशाली सम्राट खारवेल ने मगध पर चढ़ाई की थी और श्री जगन्नाथ को वहाँ से लाकर इस क्षेत्र में फिर से प्रतिष्ठित किया था । ई. ८२४ में उत्कल के केसरी वंशीय पुण्यश्लोक नरपति ययाति केसरी ने इस महान देवता के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था । परंतु समुद्र तटवर्ती स्थान होने के कारण नमकीन हवा से यह मंदिर थोड़े ही वर्षों में नष्ट हो गया। इसके बाद ई. १०३८ में उत्कल के गंगावंश संभूत चिरस्मरणीय नरपति महामना चोड गंगादेव या चुड गंगदेव के द्वारा आज के इस जगविख्यात मंदिर का पुनः निर्माण हुआ ।' उक्त विवरण में जिस नीलमाधव या जगन्नाथ की प्रतिमा का उल्लेख है, वस्तुतः वही कलिंग जिन की प्रतिमा थी । यही प्रतिमा नीलमणि की तीर्थंकर ऋषभदेव की थी । सम्राट खारवेल ने मगध से उसे मूर्ति को वापस लाकर पहले कुमारी पर्वत पर अरहंत जिनालय में विराजमान किया था। उसके लिए समुद्र तट पर एक भव्य और समुन्नत जिनालय का निर्माण करके उस मूर्ति की शोभायात्रा बड़े समारोह के साथ निकाली थी और उस जिनालय में उसकी प्रतिष्ठा की थी । जगन्नाथ पुरी का वर्तमान मंदिर मूलतः खारवेल द्वारा निर्मित वही जिनालय है। इस मंदिर के प्राचीन समय में जिनालय होने के साक्ष्य आज भी मंदिर में उपलब्ध हैं । ___मंदिर के दक्षिण द्वार में प्रवेश करने से पूर्व बाहर ही बायीं और दीवार में भगवान ऋषभदेव की हल्के सिलेटी वर्ण की खड्गासन दिगंबर मुद्रा में लगभग एक फुट अवगाहना की प्रतिमा विराजमान है । प्रतिमा के
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy