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जैनत्व जागरण.....
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सम्राट खारवेल कलिंग जिन की प्रतिमा को वापस कलिंग लेकर आए । इस प्राचीन प्रतिमा को सम्राट खारवेल ने कोटिशिला (कोटिशिला वर्तमान में भुवनेश्वर के निकट खंडगिरि और उदयगिरि या कुमारी पर्वत के नाम से जाना जाता है) पर अर्हतप्रासाद बनवाकर विराजमान करवाया ।
कुमारी पर्वत पर अर्हत भगवान की निसधा के निकट उन्होंने एक उन्नत जिन प्रासाद बनवाया था तथा पचहत्तर लाख (१८,००,०००) मुद्राओं को व्यय करके उस पर वैडूर्यर्यरत्नजड़ित स्तंभ खड़े करवाए थे । उनकी रानी ने भी जैन मंदिर और मुनियों के लिए गुफाएँ बनवाई थी जिनमें तीर्थंकरों की सुंदर प्रतिमाएं भी उकेरी गई जो अब भी मौजूद है। सम्राट खारवेल और उनकी रानी ने कुमारी पर्वत पर अनेक गुफाएँ बनवाई जिनका प्रयोग जैन मुनियों के निवास स्थान के रूप में होता था और मुनिगण यहाँ रहकर तपस्या किया करते थे। सम्राट खारवेल मुनियों की बहुत भक्ति और विनय करते थे ।
सम्राट खारवेल के समय में अंग ज्ञान विलुप्त हो चला था । उस समय मथुरा, उज्जैन, गिरनार जैन मुनियों के केंद्र स्थान थे । खारवेल ने जैन मुनियों का एक महा सम्मेलन आयोजित किया था । मथुरा, उज्जैन, गिरनार, कांचीपुर आदि अनेक स्थानों से मुनि उस सम्मेलन में भाग लेने के लिए कुमारी पर्वत पहुंचे थे। बहुत वृहद् स्तर पर सम्मेलन किया गया। निग्रंथ श्रमण संघ ने यहाँ एकत्र होकर उपलब्ध द्वादशांग जिनवाणी के उद्धार का महान कार्य किया ।
जगन्नाथ या नीलमाधव या जिननाथ, पुरी (मूल कलिंग जिन मंदिर)- सम्राट खारवेल की मृत्यु के पश्चात् कलिंग में जिन धर्म की क्या स्थिति रही और कलिंग जिन प्रतिमा का क्या हुआ? इस विषय पर इतिहास प्रायः मौन ही रहता है । खंडगिरि-उदयगिरि से प्राप्त शिलालेखों से यह स्पष्ट है कि सम्राट खारवेल जैन धर्म के अनुयायी थे और कलिंग जिन की प्रतिमा भगवान ऋषभदेव की एक जैन प्रतिमा थी । खंडगिरि तीर्थ से लगभग ५४ किलोमीटर दूर है प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी का मंदिर ।