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जैनत्व जागरण.....
स्तर पर स्वागत किया और उत्सव मनाया । यह जैन धर्म के प्रति उनकी अगाढ़ श्रद्धा का प्रतीक था ।
सम्राट खारवेल अपने भुजाबल, पराक्रम, प्रताप और धर्मकार्य के लिए प्रसिद्ध थे । उन्होंने सारे भारत पर दिग्विजय प्राप्त की थी । हाथी गुफा के शिलालेख में मंगलाचरण के पश्चात् सम्राट खारवेल के लिए ऐसे संबोधन किया गया है 'ऐर महाराज महामेघवाहन चेत (चेदी) राजवंश वर्धन कलिंग के अधिपति श्री खारवेल । स्पष्ट है कि खारवेल चेदी वंश के थे। यह राजवंश चेदि अथवा चेति छत्रियों(क्षत्रियों) का था । चेदि वंश एर अथवा एल था । जैन शास्त्रों में एल वंश की स्थापना का वर्णन मिलता
इतिहासकारों ने सम्राट खारवेल का काल ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का उतरार्द्ध निर्धारित किया है। उसने अपनी आयु के १५ वर्ष कुमार अवस्था में व्यतीत किए और अनेक कलाएँ सीखीं । अभिलेख के अनुसार खारवेल १६ वर्ष की अवस्था में युवराज पद पर आसीन हुआ और २४ वर्ष की अवस्था तक इसी पद पर रहा । २४ वर्ष की अवस्था में खारवेल का राज्याभिषेक हुआ । खारवेल एक महत्वाकांक्षी वीर युवक था । उसकी आकांक्षा समस्त भारत को विजित करके एकसूत्र में आबद्ध करने की थी। अपने राज्य के सातवें वर्ष अर्थात् ३१ वर्ष की आयु में खारवेल ने वजिराघर की राजकुमारी के साथ विवाह किया । इतिहासकार वजिराघर की पहचान मध्य प्रदेश में चांदा जिले के वैरागढ़ से करते हैं । उदयगिरि पर्वत की मंचपुरी गुफा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि वह गुफा उनकी रानी ने मुनियों के उपयोग के लिए बनवाई थी । सम्राट खारवेल की एक और रानी थी जिनका नाम सिंधुला था । सिंधुला, सिंहपथ की राजकुमारी थीं। सिंधुला सम्राट खारवेल की तरह ही जैन धर्म की परम भक्त थीं और मुनियों की बहुत विनय करती थीं। उन्होंने कलिंग से विलुप्त हो रहे जैन धर्म के उद्धार के लिए अनेक कार्य किए और खंडगिरि-उदयगिरि पर्वत पर अनेक गुफाएँ बनवाई जिनमें तीर्थंकरों की सुंदर प्रतिमाएँ भी उकेरी गई ।
सम्राट खारवेल की जैन धर्म को देन- मगध सम्राट को हराकर