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________________ जैनत्व जागरण..... २५५ शिलालेख की पंक्ति ११-१२ से होता है । कलिंग ने स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली लेकिन शीघ्र ही उनके ऊपर फिर से भयानक विपत्ति आ गई । ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक ने अपने पूरे दल-बल के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया । दो वर्ष तक भयंकर युद्ध चला। लाखों लोग मारे गए, बंदी बना लिए गए। लेकिन किसी कलिंग वासी ने आत्म-समर्पण नहीं किया । अशोक ने अपने शिलालेख १० में यह स्वीकारा है कि कलिंग युद्ध में १ लाख लोग मारे गए, डेढ़ लाख लोग बंदी बनाए गए और बाद में इससे कई गुना लोग मरे । किंतु यह संख्या कलिंग के सैनिकों की है । अशोक ने अपने पक्ष के हताहतों की संख्या का उल्लेख करना शायद उचित नहीं समझा । शायद यह संख्या कलिंग के सैनिकों से कई ज्यादा हो । अशोक ने अपने १३वें अनुशासन में यह भी स्वीकारा है कि कलिंग युद्ध में ब्राह्मण और श्रमण दोनों संप्रदाय के लोगों ने दुःख उठाए थे । श्रमण वस्तुतः जैन थे । कलिंग वासियों के हृदय में जितना दुःख अपने देश की स्वतंत्रता के अपहरण का था उससे कई ज्यादा दुःख अपने आराध्य देव कलिंग जिन के लिए था। कलिंग वासी इसी प्रतीक्षा में थे कि अब कोई ऐसा राजा कलिंग पर राज्य करे जो उनके आराध्य देव कलिंग जिन को ससम्मान कलिंग वापस लेकर आए । तदपरांत दक्षिण कौशलवर्ती चेदिराज के वंश के एक महापुरुष ने कलिंग पर अधिकार जमा लिया था । वह थे- सम्राट खारवेल । कलिंग वासियों की इस भावना की पुष्टि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में सम्राट खारवेल ने की। महाराजा महापद्मनंद के २७५ वर्ष पश्चात् सम्राट खारवेल ने मगधों को भयभीत करते हुए अपने हाथियों को सुगांगेय (पाटलिपुत्र का महल) तक पहँचाया और मगध के सम्राट वहसतिमित्र को पैरों में गिरवाया । सम्राट खारवेल जब वहा से लौटे तो धन संपत्ति के साथ कलिंग जिन की उस प्रतिमा की भी साथ लेकर आए जिसे महापद्मनंद अपने साथ ले गया था। कलिंग वासियों ने अपने आराध्य देव के पुनः कलिंग में पधारने पर राष्ट्रीय
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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