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जैनत्व जागरण.....
somewhere and left. After our generation there will be few people intersted in studing such things." राढ देश में जैन धर्म के विकास सम्बन्धी शोध कार्यों का किस कारण से इतिहासकारों ने आज तक उपेक्षा करते रहे हैं । यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि भारतीय इतिहास में जैन ऐतिहासिक तथ्यों की जितनी उपेक्षा हुई है उतनी शायद किसी की भी नहीं हुई। अनेक राजाओं, गणतंत्र के प्रमुखों; जैन सेनापतियों, सार्थवाहों ने या तो गायब कर दिया है या परिवर्तित कर दिया है । इस सन्दर्भ में डॉ. डी. सी. सेन की किताब वृहतबंग में लिखा है
“The Brabhmin were responsible for wiping out Jainism from Bengal. Jain temples were converted into Hindu temples and even some of the deities who were widely worshipped were given Hindu names and worshipped as Hindu Gods without acknowledgement of their Jaina origin.
इस क्षेत्र में भ्रमण के बाद इस कथन की सत्यता उजागर होती है कि किस प्रकार जैन धर्म विरोधी प्रवाह में एक प्राचीन संस्कृति को नष्ट कर उसे जीवन्त समाधि दे दी गयी । संस्कृति की जीवन्त समाधि :
बंगाल सीमान्त प्रदेशों में विशेषकर जो बिहार और उड़ीसा से संलग्न है वहाँ पर जैन धर्म की जड़े बहुत ही प्राचीन और गहरी है जिनके साक्ष्य निदर्शन के रूप में आज भी उस क्षेत्र में सर्वत्र विखरे पड़े हैं । भारत की आजादी के बाद सबसे ज्यादा अगर कोई पुरातत्व सामग्री की अवहेलना हुई है तो वह जैन पुरातत्व ही है। विदेशों में हम देखते हैं कि एक छोटी सी छोटी प्राचीन वस्तु को भी सुरक्षित करके रखते हैं और उसकी प्राचीनता पर गर्व महसूस करते हैं। इसके विपरीत हमारी सरकार और पुरातत्व विभाग प्राचीन निदर्शनों का संरक्षण तो दूर उनको नष्ट करने के प्रयास में सहयोगी अवश्य बन रहे हैं । उनमें प्राचीन निदर्शनों का संरक्षण करने की इच्छा शक्ति का अभाव स्पष्ट दिखाई देता है । एकांगी विचारधारा के पोषक इस