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जैनत्व जागरण.....
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In Manbhum it is said they were not served by Brahmins of any kind until they were provided with a priest by a former Raja of Panchet as a reward for a service rendered to him by a Sarak who concealed him when his country was invaded by the Bargis i.e. the Marathas."
परवर्ती काल में पंचकोट से आए सराकगण चार भागों में विभक्त होकर स्थान-स्थान पर बिखर गए। . जिन लोगों को पंचकोट के राजाओं ने जमीन आदि दी वे तो पंचकोट अंचल में ही रह गए एवं उन्हें 'पंचकोटिया' कहा जाने लगा । • जो लोग दामोदर नदी के उस पार वर्धमान जिले में चले गए, उन्हें 'नदी पारिया' और जो वीरभूम चले गए उन्हें 'वीरभूमिय' • जो राँची जिले के ताम्बे वाले परगना में चले गए वे कहलाए “तामारीय"। • इसके अतिरिक्त विष्णुपुर अंचल के जो सराकगण उस समय वस्त्र शिल्प में नियुक्त थे उन्हें कहा जाता था- सराकी तांती । परवर्ती काल में सराकगण
और भी कई भागों में विभक्त हो गए । इनमें अश्विनी, तांती, पात्र, उत्तरकूपी एवं मान्दारानी उल्लेख योग्य है । संथाल परगना के सराक लोगों को इस समय फूल सराकी, शिखरिया, कान्दाला एवं सराकी तांती कहा जाता है। सराकगण जाति की दृष्टि से तांती नहीं थे और न ही तांत शिल्प में नियुक्त थे उन्हें पेशागत कारण से सराकी तांती कहा जाता था । पांचेत अंचल के सराकगण तो एक लम्बे समय से ही कृषि कर्म में नियुक्त हैं।
वर्तमान काल में सराकों से हमारा यह परिचय यह जिज्ञासा जरूर उत्पन्न करता है कि जिस जाति का चरित्र इतना उन्नतशील है, जिनकी एक विशिष्ट संस्कृत है, धर्म परिवर्तन के बावजूद जिन्होंने अपनी जीवन शैली में प्राचीन जैन परम्पराओं को आज तक सहेज कर रखा है उन्हें हम इतने दिनों तक कैसे भूले रहे । इस विषय में राज्य के अधिकारियों का मानना है कि पूजी का अभाव इसका कारण है । जबकि इतिहासकार बी. एन. मुखोपाध्याय के अनुसार शोध कर्ताओं की कमी तथा रुचि ना होना भी इसका कारण है । “Even researchers are Losing interest gradually. A few years ago I urged a young scholar to study the structure and conduct a research. However he soon got a job