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________________ २४० जैनत्व जागरण.... सराकगण विभिन्न राजाओं के आश्रय में निवास करते रहे । धलभूम में राजा मानसिंह के आश्रय में बहुत सी सराक प्रजा निवास करती थी। राजा मानसिंह के साथ सराकों के सम्बन्ध खराब नहीं थे, फिर भी एक समय राजा मानसिंह के सराक परिवार की किसी एक लड़की के साथ अभद्र व्यवहार करने के कारण सराकगण उनसे विरक्त हो गए थे एवं प्रतिवाद स्वरूप दल के दल लोग सिंहभूम का परित्याग कर पांचेत अंचल में आकर बसने लगे । सत्य और निष्ठावान सराक जाति जिस प्रकार अन्याय करती नहीं है उसी प्रकार अन्याय को सहन भी नहीं कर पाती हैं । उपर्युक्त घटना सराकों की इसी मनःस्थिति को प्रकट करती है । इसी ऐतिहासिक घटना की सत्यता स्वीकार कर मिस्टर कुपलैण्ड लिखते हैं- They (Saraks) first settled near Dhalbhum in the estate of a certain Man Raja. They subsequently moved in a body to Panchet in consequence of an outrage contemplated by Man Raja on a girl belonging to their caste.” धलभूम से स्थान परिवर्तन के पश्चात् सराकगणों की यह शाखा पंचकोट के राजा के आश्रित होकर रहने लगी । यहाँ उन लोगों ने जैन धर्म परित्याग कर वैष्णव धर्म ग्रहण कर लिया । वे भी अब हिन्दुओं की भाति पदवी, गोत्र एवं ब्राह्मण पुरोहित प्राप्त करने लगे। . सराकों का जैन धर्म से हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो जाने के पीछे एक आश्चर्य जनक इतिहास है । यह समय बंगाल में वर्गी आक्रमण कर काल था । उस समय काशीपुर के राजाओं की राजधानी पंचकोट पहाड की तलहटी में थी । वर्गी आक्रमण से संकटग्रस्त राजपरिवार के किसी एक शिशु पुत्र को छिपाकर सराक समाज के किसी एक व्यक्ति ने उसके प्राण बचाए थे। फिर कुछ बड़ा होने पर राजपरिवार के इस बच्चे के उन्होंने पुनः लौटा दिया था । इसी के प्रतिदान में सराकों को भी हिन्दुओं की भाति मर्यादा और सम्मान प्राप्त हुआ । कृषि योग्य भूमि देकर राजपरिवार के लोगों ने सराकों को प्रगतिशील एवं दक्ष कृषकों में रूपान्तरित कर दिया | इस प्रसंग में मिस्टर कुपलैण्ड का कथन है
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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