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________________ जैनत्व जागरण...... २३१ है वह पार्श्वनाथ की है । दक्षिण बारासात में इसी प्रकार की जीर्ण अवस्था में पार्श्वनाथ की एक मूर्ति उन्मुक्त स्थान में एकदम अवहेलित रूप में पड़ी है । • सुन्दरवन से कई जैन चौखुपी मन्दिर की क्षुद्र अनुकृतियाँ पायी गयी हैं । ये आठ से दस इंच ऊँची हैं । इनमें दो पाषाण की हैं, I हैं जली हुई मिट्टी की । चौखुपी चतुष्कोण है। इसके चारों ओर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । चौखुपी शब्द चौमुख से आया है। जैन शिल्प का एक वैशिष्ट्य होता है चतुर्मुख या चौमुखी प्रतिमा । अन्य सराक संस्कृति से जुड़े अतीत के पुराक्षेत्रों की पर्यालोचना करने पर एक विशेष तथ्य हमारे सम्मुख उभरता है- वह है छोटा नागपुर अंचल के समस्त पुराक्षेत्रों का दामोदर एवं कंसावती नदी के तटवर्ती अंचलों पर अवस्थित होना । यहाँ की दामोदर एवं कंसावती ने माला की भाँति गूँथ रखा है इस समस्त पुराक्षेत्रों को । अतः कहा जा सकता है प्राचीन सराक संस्कृति थी अधिकांशतः नदी मातृक । दामोदर एवं कंसावती की पुण्य धाराओं ने अतीत के सराक भाष्कर्य शिल्प को संजीवित किया था । दामोदर एवं कंसावती के स्नेह रस में स्निग्ध हुई थी उस समय की अहिंसा धर्म की अमर पुण्य भूमि । " ( बंगाल में जैन युग की स्मृति) इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक जैन मूर्तियाँ तीर्थकरों, गणधरों एवं शासन देवियों की जो इन क्षेत्रों में सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं वे इन्हीं सराकों के पूर्व पुरूषों के द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठित करायी गयी हैं । इनकी प्राचीन कारीगरी के बहुत से चिन्ह अवशेष हैं जो इस देश में सबसे प्राचीन हैं, ऐसा यहाँ के सब लोग कहते हैं । ये चिन्ह वास्तव में उन लोगों के हैं जिस जाति के लोगों को सराक- सरावग कहते हैं जो शायद भारत के इस भाग में सबसे पहले बसने वाले हैं । प्रश्न उठता है, कि ये पाषाण शिल्प के कलादक्ष कारीगर कौन थे, कहाँ से आये थे जिसके जबाव में हम कह सकते हैं कि श्रावक सम्प्रदाय के इस क्षेत्र में आने के बाद जब भाष्कर्य शिल्पियों की आवश्यकता हुई तब इन्हें जैनाचार्यों द्वारा प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया । पुराकीर्ति के जो निदर्शन आज हमें प्राप्त होते हैं वह इन्हीं सराक शिल्पियों के हैं । इस
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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