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जैनत्व जागरण .......
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आविष्कृत हुए हैं उनमें अधिकांश जैन धर्म संस्कृति के परिचायक हैं। उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत कर सकते हैं वर्द्धमान जिले का सात देउलिया पुरुलिया का देउ या देउली ।
चौबीस परगना जिले में कुछ दूर-दूर स्थित कई ग्रामों में जैन धर्म संस्कृति के निदर्शन देखे जाते हैं । इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि जैन धर्म के प्राधान्य काल में इस अंचल में एक जैन समाज या जैन धर्म का केन्द्र था । ग्रामों के नाम यथाक्रम करञ्जलि, कांटावेनिया एवं घाटेश्वर है ।
करञ्जलि (ऐसी विशुद्ध भाषा किसी गाँव के नाम की नहीं सुनी जाती । इसी से धारण की जा सकती है कि किसी समय यह गाँव समृद्ध था जो कि अब वर्तमान में एक साधारण गाँव मात्र है ।) गाँव में किसी-किसी भू-स्वामी के घर में कुछ पुरातत्व की वस्तुएँ रक्षित है। ये सब इसी अंचल से संग्रहित हैं । इनमें कई जैन संस्कृति के निदर्शन भी हैं। इसी ग्राम की एक पुष्करनी के तट पर दो वृहद् आकार के स्तम्भ या मन्दिर के खम्भे
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। इस पर उत्कीर्ण कारूकार्य को लक्ष्य कर यह कहा जा सकता है कि ये जैन शिल्प के निदर्शन हैं । दोनों स्तम्भ जैन मन्दिर के हैं जो कि इसी ग्राम के भू-गर्भ में चला गया है । कांटावेनिया काँटावेनिया ग्राम से कुछ दूर गाँव में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक अक्षत और सुन्दर मूर्ति प्रायः ४ फुट ऊँची है जो की यत्नपूर्वक मन्दिर में रखी हुई है । उसकी पूजा भी नित्य होती है एवं बलि भी दी जाती था ।
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धाटेश्वर कुछ दूर अवस्थित घाटेश्वर गाँव में आदिनाथ अर्थात् जैन धर्म के प्रवर्तक ऋषभदेव की मूर्ति है । घाटेश्वर ग्राम की आदिनाथ भगवान की मूर्ति यद्यपि जीर्ण हो गयी है फिर भी लक्षण और शिरस्त्राण को लक्ष्य करते हुए यह सिद्ध किया जा सकता है कि यह मूर्ति ऋषभदेव की है । पद्म पर दण्डायमान, मस्तक पर मुकुटाकार जटाजूट, पास में उड्डीयमान गन्धर्व है । वृषभ (बैल) लांछन एकदम अस्पष्ट हो गया है ।
• कैनिंग शहर से कुछ दूर मातला थाने के आधीन बोल बाउल ग्राम में अति जीर्ण अवस्था में प्राय: ५ फुट ऊँची जो जैन मूर्ति मिलती