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जैनत्व जागरण.....
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के टूरिस्ट ब्यूरो के विज्ञापन में लिखा गया है- माइथन तुम्हें पुकार रहा है। यात्रा करते समय बराकर के कोलाहलहीन शान्तिधाम, कल्याणेश्वरी और विख्यात् शिव मन्दिर आर्त-हृदयों की क्लान्ति को समाप्त कर देगा ।
किन्तु बराकर मन्दिरों को विख्यात शिव मन्दिर कहकर प्रचार करने से न केवल सत्य को ही झुठलाया जाता है अपितु, विदेशी भ्रमणकारियों को विभ्रान्त भी बनाया जाता है । टूरिस्ट ब्यूरो जैसी दायित्वशील संस्था के द्वारा इस प्रकार का प्रचार शोभा नहीं पाता ।
लोकदृष्टिके अन्तराल में पड़ी हुई ये पुरावस्तुएं शोध-खोज की आशा रखती हैं। विशेष रूप से नदी-गर्भ से प्राप्त यहाँ की यन-सामग्री के इतिहास
का भी अनुसन्धान परम आवश्यक है। कितने विस्मय की बात है कि वर्द्धमान जिले के दुर्गापुर शिलांचल के आसपास के ग्रामों में जैन धर्म ने व्यापक रूप में अपना जो विस्तार किया था इतिहासकारों ने उसका कहीं उल्लेख ही नहीं किया । दामोदर के तीरवर्ती बाँकुड़ा और वर्द्धमान के विभिन्न इलाके एवं आज के दुर्गापुर इलाके के नाना स्थान उनके पुण्य पाद-स्पर्श से धन्य हुए हैं । राढ़ देश में जैन धर्म के विकास सम्बन्धी निष्ठापूर्ण शोधकार्य को इतिहासकार किस कारण से उपेक्षा करते आए हैं मात्र दुर्गापुर के पार्श्ववर्ती कुछ ग्रामों की पुरावस्तु से ही इस प्रसंग की आलोचना की जा सकती है। दामोदर बाँध के पश्चिम तटवर्ती बाँकुड़ा जिले के बड़जोड़ा थाने का मेटेली ग्राम चर्मकार, शृंडि, धीवर, बागदी, बाउरी, एवं कुम्भकार जाति का निवास स्थल एक प्राचीन गाँव है । गाँव के गडेर डांगा में काले-पत्थर और बालुपत्थर की अनेक मूर्तियाँ पायी गयी है जो आज भी वहाँ पर है । गाँव के वृक्षतले शिवरूप में पूजित मूर्ति संग्रह के मध्य चार इंच, चौबीस इंच
और चार इंच परिमाप की शीर्ष देश भग्न काले पत्थर की एक तीर्थंकर मूर्ति । मूर्ति के नीचे हाथ में बँवर लेकर खड़े हैं दो पुरुष, चार योगी मूर्तियाँ और नीचे करबद्ध होकर खड़ी हैं दो नारियाँ एक ही पत्थर में खुदी हुई । अठारह इंच, आठ इंच और छह इंच आकार का एक दूसरा पत्थर है तीर्थंकर मूर्ति के पादपीठ में । नीचे धावमान अश्व और सिंह, नारी तथा